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[कबीर की साखी
 

  शब्दार्थ—आपसा=आपन=अपना। कहि = कह। ओरा=औरो=अन्योसे। कहाइ=कहा, कहलाइये। जिहि=जिहु=जिस। मूखि=मुख। ऊचरै=उच्यरै =उचारण हो। फेरि=पुन:।

जैसे माया मन रमैं, यूं जे राम रमाइ।
(तौ) तारा मडंल छाँड़ि करि, जहाँ केसो तहाँ जाइ॥२५।।

सन्दर्भ—यथा मन माया मे रमता है, तथा यदि राम में रम जाय तो मानव लौकिक और सांसारिक सीमाओं का उल्लंघन करके ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाय।

भावार्थ—जिस प्रकार माया मे मन रमता है उसी प्रकार यदि राम में रम जाय, तो लौकिक सीमाओ का अतिक्रमण करके मानव राम में रम जाए।

विशेष—प्रस्तुत साखी मे कवि ने राम नाम और राम के कल्याणकारी व्यक्तित्व का उल्लेख किया है। मनुष्य का मन यदि राम में उसी प्रकार रम जाय यथा माया में रमा हुआ है,तो वह ब्रह्म के साथ एकात्मकता संस्थापित कर सकता है। ‍(२‌) "तारा मण्डल छाँडि करि" से तात्पर्य है लौकिक सीमाएँ। लौकिक सीमाएँ से तात्पर्य है संसार की सीमा। ‍(३) "जहाँ केसो तहां जाइ" से तात्पर्य है जहाँ से आप है वही जायेगा। अर्थात् जिस ब्रह्म का उग्र रूप तू है उसी सर्वात्मा में तू समाविष्ट हो जायेगा। (४) प्रस्तुत साखी में कवि ने बड़े ही सुन्दर और शैली में उस मानव की आलोचना की है। जो माया में अनुरक्त ब्रह्म से विरक्त है।

शब्दार्थ— = रमै = रमे = प्रवृज हो। यूं = इस प्रकार । जे = यदि । रमाइ = रमे । तारा = नक्षत्र । जाइ = जाये।

लुटि सकै तौ लूटियौ, राम नाम है लूटि।
पीछैं ही पछिताहुगे, यहु तन जैहै छूटि।।२५।।

सन्दर्भ—प्रस्तुत साखी में कवि ने राम नाम सुलभता और जीवन की क्षण भंगुरता की ओर संकेत किया है। कवि ने बड़ी स्पष्टता के साथ कहा है जब "यहु तन जैहै छूटि" तब "पीछैं ही पछिताहुगे।"

भावार्थ— राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट ले। अन्यथा जब तन से आत्मा विलग हो जायेगी तब पीछे पछताना पड़ेगा।

विशेष— ‍(१‌) राम नाम का ही सुलभ है। राम नाम बड़ा ही कल्याणकारी तत्व है। इस प्रकार के कल्याणकारी तत्व की उपेक्षा करने के कारण मानव का बड़ा अहित होता है। फिर भी मानव सचेत नहीं होता है (२) पीछे....छूटि न कवि ने यह बताने की चेष्टा की है कि प्राणान्त हो जाने पर पछताना पड़ेगा।