यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सुमिरन को अंग]
[८३
 

  सन्दर्भ- प्रस्तुत साखी में कवि नाम जप के महत्व को उल्लेख करता है । उसका आग्रह पूर्ण अभिमत है कि अज्ञान निशा में सोने से कोई लाभ नही है । रात दिन नाम-जप करने का प्रतिफल यह हो सकता है कि ब्रह्म तक कभी न कभी तो प्रार्थना पहुंच ही जायेगी ।

भावार्थ—केशव का नाम उच्चरित करते रहिए । इतना आग्रह है कि अज्ञान-निद्रा में मत सोइए । दिन-रात के नाम जप से कभी न कभी तो पुकार सुनी ही जायेगी ।

विशेष—(१) सुमिरण कौ अंग की अन्य सखियों के वर्ण्य विषय की तुलना में प्रस्तुत साखो के वर्ण्य-विषय में विशिष्ठता और अभिनवता है । कवि ने यहाँ मानव-समाज से विशेष प्रकार का इस प्रकार (आग्रह) किया है । आग्रह इस वान का है कि "ना सोइए" तथा 'रात दिवस कै कूकणौं (मन) कत्रहूँ लगै पुकार ।' (२) प्रस्तुत साखी में कवि के मस्तिष्क की स्थिरता तथा दृढ़ता के भाव के साथ ही साथ अनन्य विशवास तथा भरोसा का भाव प्रतिविम्बित होना है । कवि को आषवादी विचारधारा भी "कत्रहूँ लगै पुकार" से प्रतिभासित होना है ।

शब्दार्थ—केसौ= केशव । कूकिये= आनन्द से भरे स्वर में पुकारिए । सोइयै= सोइए । असरार = इसरार- आग्रह । कूकणौं= कूक्ने से । पुकार= अर्ज, प्रार्थना । कबहूँ= कभी तो ।

जिहि घटि प्रीति न प्रेम रस,फुर्न रसना नहिं राम ।
ते नर इस स्ंसार में, उपजि पये बेकाम ॥१७॥

सन्दर्भ— राम-नाम का महत्व अकथनी , अवर्णनीय, अनिवर्तनीय, तथा दिव्य है । कबीर ने विगत प्रसंगो में लिखा है कि "राम नाम तनमार हैॱॱॱॱ राम कहै भला होइगा, नहि तर भला न होइॱॱॱॱॱॱभगति भजन हरि नाम हैॱॱॱॱॱ प्रस्तुत साखो में कवि ने कहाँ है कि प्रेम, प्रीति तथा रामनाम के महत्वपूर्ण मत्रं से विहीन मानव का इन समार में अवतरित होना और पसन्द को प्राप्त होना सब बराबर है ।

भावार्थ—जिन प्राणियो के घट या शरीर में न प्रीति है न प्रेम रस और न जिह्वा पर राम नाम है । वे नर इस समार में उत्पन्न होकर भी व्यर्थ हो नष्ट हो गए ।

विशेष—(१) प्रस्तुत साखो को प्रदम पंक्ति बड़ी महत्वपूर्ण है । इस पंक्ति में कवि ने दो सारपूर्ण और तथ्यों की अभिव्यजना को है -(५)" जिन घटी प्रीति न प्रेम रस" (ग)" पूर्ण रचना नहि राम ।" कबीर को दृष्टि में आनंद के सरीर सायं-