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हिन्दू धर्म और उसका सामान्य आधार
आदि जिस किसी नाम से पुकारे जाते हों--साकार हों या निराकार, सगुण हों या निर्गुण--जिन्हें जानकर हमारे पूर्वपुरुषों ने "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" कहा है, वे अपना अनन्त प्रेम लेकर हमारे अन्दर प्रवेश करें--हमारे ऊपर अपने शुभाशीर्वादों की वर्षा करें, ताकि उनकी कृपा से हम एक दूसरे को समझ सकें, हम वास्तविक प्रेम और प्रबल सत्यानुराग के साथ एक दूसरे के लिये कार्य कर सकें और भारत की आध्यात्मिक उन्नति के लिये किये जाने वाले महत्कार्य के अन्दर हमारे व्यक्तिगत यश, व्यक्तिगत स्वार्थ अथवा व्यक्तिगत गौरव की अणुमात्र आकांक्षा भी प्रवेश न करने पाये।
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