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हिन्दू धर्म की सार्वभौमिकता
 

के पता लगने के पूर्व से ही अपना काम करता चला आया था और आज यदि मनुष्य-जाति उसे भूल भी जाय तो भी वह नियम अपना काम करता ही रहेगा, ठीक वही बात आध्यात्मिक जगत् को चलानेवाले नियमों के सम्बन्ध में भी है । जो नैतिक तथा आध्यात्मिक पवित्र सम्बन्ध एक आत्मा का दूसरी आत्मा के साथ और प्रत्येक आत्मा का परम पिता परमात्मा के साथ हमारे पता लगाने के पूर्व थे, वे ही सम्बन्ध, हम चाहे उन्हें भूल भी जाय तो भी बने रहेंगे।

इन सत्यसमूहों का आविष्कार करनेवाले ऋषि कहलाते हैं और हम उनको पूर्णत्व को पहुँची हुई विभूति जानकर सम्मान देते हैं। श्रोतागणों को यह बतलाते हुये मुझे अत्यन्त हर्ष होता है कि इनमें से कई तो अत्यन्त उच्चपद-प्राप्त स्त्रियाँ भी थीं।

यहाँ पर कोई यह तर्क कर सकता है कि ये आध्यात्मिक नियम नियम के रूप में अनंत भले ही हों, पर इनका आदि तो अवश्य ही होना चाहिये । वेद हमें यह सिखाते हैं कि सृष्टि का(अतए सृष्टि के इन नियमों का भी ) न आदि है, न अन्त ।विज्ञान ने हमें सिद्ध कर दिखाया है कि समग्र विश्व की सारी शक्ति-समष्टि का परिणाम सदा एक सा रहता है। तो फिर यदि ऐसा कोई समय था जब कि किसी वस्तु का अस्तित्व ही नहीं था, तो उस समय यह सम्पूर्ण व्यक्त शक्ति कहाँ थी ? कोई कोई कहते हैं कि ईश्वर में ही वह सब अन्तर्निहित थी। तब तो ईश्वर कभी निष्क्रिय और कभी सक्रिय हुआ; और इससे तो वह विकारशलि हो जायेगा। परन्तु