हमें यह समझ लेना चाहिये कि हमारी जाति का व्रत क्या है, विधाता ने उसे किस कार्य के लिए नियुक्त किया है, विभिन्न जातियों की पृथक् पृथक् उन्नति तथा अधिकार में हमें कौन सा स्थान ग्रहण करना है, विभिन्न जातियों के ऐक्य रूपी संगीत के लिये हमें कौन सा स्वर अलापना है। हम अपने देश में बचपन में यह किस्सा सुना करते हैं कि कुछ सपों के फन में मणि होती है और आप सर्प का चाहे जो कर डालें, पर जब तक मणि वहाँ है, तब तक सर्प कभी नहीं मर सकता। हम लोगों ने किस्से-कहानियों में राक्षसों और शैतानो कि भी बहुतेरी बातें सुनी हैं। कहते हैं कि उनके प्राण'हीरामन तोते के कलेजे के अन्दर बन्द रहते हैं और जब तक उस 'हीरामन तोते की जान में जान रहेगी तब तक उस राक्षस या शैतान का बाल भी बाँका नहीं होगा-चाहे तुम उनके टुकड़े-टुकड़े कर डालो, जो चाहे सो करो पर तोते के जीते जी उन्हें कोई मार नहीं सकता। यही बात एक जाति के सम्बन्ध में भी सत्य है। जातिविशेष का जीवन भी ठीक उसी प्रकार मानो किसी चीज़ में छिपा हुआ रहता है। वहीं उस जाति की जातीयता रहती है और जब तक उस गुप्त स्थान पर चोट नहीं पड़ती,तब तक वह जाति मर नहीं सकती। इसी तत्व के प्रकाश से, हम संसार के इतिहास की एक सर्वाधिक आश्चर्यपूर्ण अनोखी घटना को भलीभाँति देख और जान सकते हैं। हमारी इस श्रद्धासम्पन्न जन्म-भूमि पर विजेताओं के कई बर्बर आक्रमण, एक के बाद दूसरी समुद्री
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