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'३. हिन्दु धर्म और उसका सामान्य आधार ®

यह वही भूमि है जो पवित्र आर्यावर्त में भी पवित्रतम मानी जाती है; यह वही ब्रह्मावर्त है जिसका हमारे महर्षि मनु ने उल्लेख किया है। यह वही भूमि है जहाँ से अध्यात्म-प्राप्ति की प्रबल आकांक्षा तथा प्रबल अनुराग-स्रोत का उद्गम हुआ है। उसी स्रोत ने आगे चलकर संसार को प्लावित कर दिया और इतिहास इस बात का साक्षी है। यह वही भूमि है जहाँ चारों और विभिन्न आधारों में यहाँ की प्रचण्ड वेगवान महानदियों के समान-प्रबल धर्मानुराग, विभिन्न रूप से उत्पन्न होकर धीरे धीरे एक आधार में सम्मिलित, एवं शक्तिसम्पन्न हो अन्त में संसार की चारों दिशाओं में व्याप्त हो गया तथा विद्युद्गर्जन के सदृश गम्भीर ध्वनि से अपनी महान् शक्ति की समस्त जगत् में घोषणा कर दी। यह वही वीर भूमि है, जिसे भारत पर चढ़ाई करने वाले शत्रुओं का आघात सबसे पहले सहना पड़ा था। आर्यावर्त में घुसनेवाली बाहरी बर्बर जातियों के प्रत्येक हमले का सामना इसी वीर भूमि को अपनी छाती खोलकर करना पड़ा था। यह वही भूमि है, जिसने अपनी सभी आपत्तियों को झेलते हुए अभी तक अपना गौरव और तेजस्विता की कीर्ति को पूर्णतः नष्ट नहीं होने दिया। यही भूमि है, जहाँ आगे चलकर दयालु नानक ने अवतीर्ण होकर अद्भुत विश्व प्रेम का


  • सन् १८९७ में लाहोर में दिया हुआ व्याख्यान ।
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