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हिन्दू धर्म
 


हैं, कभी कभी स्वर्णकवच पहिनते हैं और नीचे उतरकर अपने भक्तों के साथ रहते हैं, भोजनादि करते हैं, असुरों से और सो से लड़ते हैं इत्यादि। फिर और एक दूसरे सूक्त में इन्द्र को बहुत उच्च पद दिया गया है, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वान्तर्यामी आदि गुणों से वह मण्डित किये गये हैं। वैसा ही वरुण के सम्बन्ध में। यह वरुण वायुदेवता हैं, जल पर इनका अधिकार है, जैसे पहले इन्द्र का था; कुछ समय के पश्चात् हम देखते हैं कि वे अकस्मात् उच्च पद पर उठा दिये गए हैं और उन्हें भी सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान आदि विशेषण दिये जाने लगे। वरुण देव के इस सर्वोच्च स्वरूप को आभिव्यक्त करनेवाला एक सूक्त मैं पढूँगा, जिससे आप मेरा अभिप्राय समझ जायेंगे। उस सूक्त का अनुवाद अंग्रेजी कविता में भी हो गया है, जिसका अर्थ यह है:-

"यह शक्तिसम्पन्न प्रभु स्वर्ग से हमारे कार्यों को अपनी आँखों के सामने होते हुये से देखते हैं। देवतागण मनुष्यों के कार्यों को जानते हैं, यद्यपि मनुष्य चाहते हैं कि अपने कार्य छिपाकर करें कोई खड़ा हो, चलता हो, चुपके से एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता हो या अपनी निभृत गुफा में बैठा हो--उसके सभी हाल-चाल का पता देवतागण पा जाते हैं। जब कभी दो मनुष्य गुप्त सलाह करते हैं और सोचते हैं कि हम अकेले हैं, तो तीसरे राजा वरुण भी वहाँ रहा करते हैं और उनके सब मनसूबों को जान जाते हैं। यह वसुधा उनकी है, यह विस्तीर्ण अनंत आकाश भी उन्हीं का

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