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हिन्दू धर्म
 

मन में सहस्रों विचार प्रविष्ट होने लगते हैं और उसमें गड़बड़ मचा देते हैं। इस बात को कैसे रोकना चाहिये और मन को किस प्रकार वश में करना चाहिये इसी विषय की सम्पूर्ण शिक्षा राजयोग में दी गई है।

अब कर्मयोग को लीजिये जिसमें कर्म करके ईश्वर की प्राप्ति की जाती है। यह तो स्पष्ट है कि समाज में कई मनुष्य ऐसे रहते हैं, जिन्होंने मानो किसी न किसी प्रकार के कर्म करने के लिये ही जन्म लिया है, जिनके मन केवल विचार के क्षेत्र में एकाग्र नहीं किये जा सकते, और जिनका दृश्य और ठोस कार्य का रूप धारण करने वाला ही एक विचार हुआ करता है। इस प्रकार के जीवन के लिये भी एक शास्त्र होना चाहिये। हममें से प्रत्येक किसी न किसी कार्य में लगा है, पर उनमें से अधिकांश अपनी शक्तियों का अधिकतर भाग व्यर्थ खो देते हैं; क्योंकि हम कर्म के रहस्य को नहीं जानते। कर्मयोग इस रहस्य को समझाता है और कहाँ और कैसे काम करना चाहिये, सिखाता है। हमारे सामने जो कार्य हैं उनमें अपनी शक्तियों के सबसे अधिक भाग का उपयोग अत्यन्त लाभदायक रीति से किस प्रकार किया जा सकता है यह भी कर्मयोग में सिखाया जाता है। पर इस रहस्य के साथ साथ हमें कर्म के विरुद्ध होनेवाले उस बड़े आक्षेप पर भी, कि कर्म के कारण दुःख होता है विचार करना चाहिये। सभी दुःख और कष्ट आसक्ति से उत्पन्न हुआ करते हैं। मैं कर्म करना चाहता हूँ, मैं किसी मनुष्य की भलाई करना चाहता हूँ, और यह बात ९९ प्रतिशत सम्भव है कि वह मनुष्य, जिसकी मैं

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