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हिन्दू धर्म
 


है। वह अन्तरहित है, स्वभावतः पवित्र है। प्रत्येक जीव स्वभावतः शुद्ध ही होता है।

जब शुभ कर्मों द्वारा उसके सब पापों और दुष्कर्मों का नाश हो जाता है तब जीव पुनः शुद्ध हो जाता है और इस प्रकार शुद्ध होकर वह देवयान को चला जाता है। उसकी वचनेन्द्रिय मन में प्रविष्ट हो जाती है। आप शब्दों के बिना चिन्तन नहीं कर सकते।जहाँ चिन्तन है, वहाँ शब्द होना ही चाहिये। जैसे ही शब्द मन में प्रवेश करते हैं, वैसे ही मन प्राण में परिणत हो जाता है और प्राण जीव में। तब जीव शीघ्र शरीर के बाहर निकल कर सौर प्रदेश को चला जाता है। इस विश्व में एक के बाद दूसरे अनेक लोक हैं। यह पृथ्वी भूलोक है, जिसमें चन्द्र, सूर्य और तारागण हैं। उसके परे सूर्यलोक है और उसके उस पार दूसरा लोक है, जो चन्द्रलोक कहलाता है। उसके परे विद्युल्लोक है और जब जीव वहाँ पहुँचता है, तब एक दूसरा अमानव जीव, जो पहले ही पूर्ण है, उसका स्वागत करने आता है और उसे दूसरे लोक, परमोच्च लोक में, जिसका नाम ब्रह्मलोक है, वहाँ ले जाता है। वहाँ जीव नित्य काल निवास करता है और पुनः जन्म या मरण को प्राप्त नहीं होता। वहाँ वह अनन्त काल तक आनंद भोगता है और केवल सृष्टि-उत्पादन शक्ति को छोड़कर सब प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त करता है। विश्व का केवल एक ही विधाता है और वह है ईश्वर। कोई भी ईश्वर नहीं बन सकता; द्वैतवादियों की धारणा है कि

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