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भाषामें जरूर कुछ सुधार करता। लेकिन मेरे भूलभूत विचार वही हैं, जो इस किताबमें मैंने व्यक्त किये हैं।

गांधीजीके प्रति आदर और उनके विचारोंके प्रति सहानुभूति रखनेवाले दुनियाके बड़े बड़े विचारकोंने ‘हिन्द स्वराज'के बारेमें जो संमति प्रगट की है, उसका सार श्री महादेव देसाईने नई आवृत्तिकी अपनी सुन्दर प्रस्तावनामें दिया ही है।

अहिंसाका सामर्थ्य, यंत्रवादका गांधीजीका विरोध और पश्चिमी सभ्यता तीनोंके बारेमें और सत्याग्रहकी अंतिम भूमिकाके बारेमें भी पश्चिमके लोगोंने अपना मतभेद स्पष्ट रूपसे व्यक्त किया है।

गांधीजीके सारे जीवन-कार्यके मूलमें जो श्रद्धा काम करती रही, वह सारी ‘हिन्द स्वराज्य' में पायी जाती है। इसलिए गांधीजीके विचारसागरमें इस छोटीसी पुस्तकका महत्व असाधारण है।

गांधीजीके बताये हुए अहिंसक रास्ते पर चलकर भारत स्वतंत्र हुआ। असहयोग, कानूनोंका सविनय भंग और सत्याग्रह - इन तीनों कदमोंकी मददसे गांधीजीने स्वराज्यका रास्ता तय किया। हम इसे चमत्कारपूर्ण घटनाका त्रिविक्रम कह सकते हैं।

गांधीजीके प्रयत्नका वही हाल हुआ, जो दुनियाकी अन्य श्रेष्ठ विभूतियोंके प्रयत्नोंका होता आया है।

भारतने, भारतके नेताओंने और एक ढंगसे सोचा जाय तो भारतकी जनताने भी गांधीजीके द्वारा मिले हुए स्वराज्य-रूपी फलको तो अपनाया, लेकिन उनकी जीवन-दृष्टिको पूरी तरह अपनाया नहीं है। धर्मपरायण नीति-प्रधान पुरानी संस्कृतिकी प्रतिष्ठा जिसमें नहीं है, ऐसी ही शिक्षा-पद्धति भारतमें आज प्रतिष्ठित है। न्यायदान पश्चिमी ढंगसे ही हो रहा है। इसकी तालीम भी जैसी अंग्रेजोंके दिनोंमें थी वैसी ही आज है। अध्यापक, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर और राजनीतिक नेता-ये पांच मिलकर भारतके सार्वजनिक जीवनको पश्चिमी ढंगसे चला रहे हैं। अगर पश्चिमके विज्ञान