आजकी सभ्यता ढूँढती है; और यही देनेकी वह कोशिश करती है। परंतु वह सुख भी नहीं मिल पाता।
यह सभ्यता तो अधर्म है और यह यूरोपमें इतने दरजे तक फैल गयी है कि वहाँके लोग आधे पागल जैसे देखनेमें आते हैं। उनमें सच्ची कूबत नहीं है; वे नशा करके अपनी ताक़त क़ायम रखते है। एकान्तमें[१] वे बैठ ही नहीं सकते। जो स्त्रियां घरकी रानियाँ होनी चाहिये, उन्हें गलियोंमें भटकना पड़ता है, या कोई मज़दूरी करनी पड़ती है। इंग्लैंडमें ही चालीस लाख गरीब औरतोंको पेटके लिए सख्त मज़दूरी करनी पड़ती है, और आजकल इसके कारण 'सफ्रेजेट' का आन्दोलन[२] चल रहा है।
यह सभ्यता ऐसी है कि अगर हम धीरज धर कर बैठे रहेंगे, तो सभ्यताकी चपेटमे आये हुए लोग खुदकी जलायी हुई आगमें जल मरेंगे। पैगम्बर मोहम्मद साहबकी सीखके मुताबिक यह शैतानी सभ्यता है। हिन्दू धर्म इसे निरा 'कलजुग' कहता है। मैं आपके सामने इस सभ्यताका हूबहू चित्र नहीं खींच सकता। यह मेरी शक्तिके बाहर है। लेकिन आप समझ सकेंगे कि इस सभ्यताके कारण अंग्रेज प्रजामें सड़नने घर कर लिया है। यह सभ्यता दूसरोंका नाश करनेवाली और खुद नाशवान है। इससे दूर रहना चाहिये और इसीलिए ब्रिटिश और दूसरी पर्लियामेन्टें बेकार हो गईं हैं। ब्रिटिश पार्लियामेन्ट अंग्रेज प्रजाकी गुलामीकी निशानी है, यह पक्की बात है। आप पढ़ेंगे और सोचेंगे तो आपको भी ऐसा ही लगेगा। इसमें आप अंग्रेजोंका दोष[३] न निकालें। उन पर तो हमें दया आनी चाहिये। वे काबिल प्रजा हैं इसलिए किसी दिन उस जालसे निकल जायेंगे ऐसा मैं मानता हूँ। वे साहसी और मेहनती हैं। मूलमें उनके विचार अनीतिभरे नही है, इसलिए उनके बारेमें मेरे मनमें उत्तम[४] ख़याल ही है। उनका दिल बुरा नहीं है। यह सभ्यता उनके लिए कोई अमिट रोग नहीं है। लेकिन अभी वे उस रोगमें फँसे हुए हैं, यह तो हमें भूलना ही नहीं चाहिये।