ऐसा मानना निरा अज्ञान है। गरीब हिन्दुस्तान तो गुलामीसे छूट सकेगा, लेकिन अनीतिसे पैसेवाला बना हुआ हिन्दुस्तान गुलामीसे कभी नहीं छूटेगा।
मुझे तो लगता है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि अंग्रेजी राज्यको यहाँ टिकाये रखनेवाले ये धनवान लोग ही हैं। ऐसी स्थितिमें ही उनका स्वार्थ सधेगा। पैसा आदमीको दीन[१] बना देता है। ऐसी दूसरी चीज दुनियामें विषय-भोग[२] है। ये दोनों विषय[३] विषमय[४] हैं। उनका डंक साँपके डंकसे ज्यादा ज़हरीला है। जब साँप काटता है तो हमारा शरीर लेकर हमें छोड़ देता है। जब पैसा या विषय काटता है तब वह शरीर, ज्ञान, मन सब-कुछ ले लेता है, तो भी हमारा छुटकारा नहीं होता। इसलिए हमारे देशमें मिलें कायम हों, इसमें खुश होने जैसा कुछ नहीं है।
पाठक : तब क्या मिलोंको बन्द कर दिया जाय?
संपादक : यह बात मुश्किल है। जो चीज़ स्थायी या मज़बूत हो गई है, उसे निकालना मुश्किल है। इसीलिए काम शुरू न करना पहली बुद्धिमानी है।[५] मिल-मालिकोंकी ओर हम नफ़रतकी निगाहसे नहीं देख सकते। हमें उन पर दया करनी चाहिये। वे यकायक मिलें छोड़ दें, यह तो मुमकिन नहीं है; लेकिन हम उनसे ऐसी विनती कर सकते हैं कि वे अपने इस साहसको बढ़ायें नहीं। अगर वे देशका भला करना चाहें, तो खुद अपना काम धीरे धीरे कम कर सकते हैं। वे खुद पुराने, प्रौढ़, पवित्र चरखे देशके हजारों घरोंमें दाखिल कर सकते हैं और लोगोंका बुना हुआ कपड़ा लेकर उसे बेच सकते हैं।
अगर वे ऐसा न करें तो भी लोग खुद मशीनोंका कपड़ा इस्तेमाल करना बन्द कर सकते हैं।
पाठक : यह तो कपड़ेके बारेमें हुआ। लेकिन यंत्रकी बनी तो अनेक चीजें हैं। वे चीजें या तो हमें परदेशसे लेनी होंगी या ऐसे यंत्र हमारे देशमें दाखिल करने होंगे।