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उतरने के लिये भेजा था। १८७४ ई० तक उसने सब गुफाओं का ठीक ठीक निरीक्षण करके बहुत से चित्र भी उनके बना लिये थे*। उन गुफाओँमें खिड़कियाँ तथा द्वार बनाने का भी प्रयत्न किया गया था, किन्तु उसमें सफलता नहिं हुई। अब भी वहाँ सफ़ाई का काम होता रहता है। सब गुफायें मिलाकर २९ हैं उनमेंसे दो अधूरी रह गई हैं। एक में तो जानेके रास्ता ही नहिं है। इन गुफाओँएं नम्बर पड़े हुए हैं। इन में से पाँच (९, १०, १९, २९, २७) चैत्य (बौद्ध मन्दिर) हैं। इनके आकार बाहर से लम्बे तथा भीतर से चन्द्राकार हैं। बीचमें खंबों की दो पंक्तियां है। सामने के भाग की ऊँचाई कम है। इनकी दीवारों में एक से तीन दरवाजे तथा दो दो खिड़कियाँ हैं। कुछ के आगे दालान हैं और उन पर बड़ी बड़ी छते हैं। बाकी गुफाये बौद्ध्बिहार के रूप में हैं। बहुधा ये चौकोनी हैं। इनमें भी खंभे हैं। बौद्ध की मूएतियाँ इन में बहुत सी हैं। कुछ गुफायें अधूरी रह गई हैं किन्तु केवल एकको छोड़कर बाकी सबमें चित्र अङ्कित किये हुए हैं। ये गुफायें ई० पू० २०० से ८०० ई० तक (अर्थात् १००० वर्ष) भिन्न भिन्न समयमें बनाई गई होंगी। कुछ गुफाऔँ में शिलालेख भी मिलते हैं किन्तु उनसे कुछ विशेष पता नहिंचलता। इन चित्रों के देखने से तथा उनपर विशेष ध्यान देनेसे तीसरी सें आठवीं शताब्दी तकके भारत की रहन-सहन तथा उसकी सभ्यता का बहुत कुछ ज्ञान हो सकता है। इन चित्रों में तत्कामीन राजा, रानी। मन्त्री, सेवकगण, किसान, सैनिक तथा कारीगर तत्कामीन पोशाक पहने हुए दिखाये गये हैं। और भी अनेक भिन्न विषयक चित्र दिये हुए हैं जिनसे उस समय के धार्मिक तथा सामाअजिक विचारोंक बहुत कुछ ज्ञान होत है। कला कि दृष्टिसे ये चित्र अद्वितीय हैं। ग्रिफिथ साहब का कथन है कि भावों का ऐसा समावेश तो शायद संसार के किसी ही चित्रालय में देखने को मिले।

  • इसने ३० बड़े चित्र ख़ीचकर लंडन भेजे थे। उनमें से २५ सिडनहेमके स्फटिक मन्दिर में रक्खे हुए हैं। १८६६ ई० के भीपणा अग्निकाणढमें थे सब जलकर खाक हो गये। Mrs. Speir's Ancient India नामकी पुस्तकमें कुछ खुदाईके कामके नमूने तो अवश्य दिये हुए हैं किन्तु गिलके चित्र इत्यादि का कोई उल्लेख नहिं मिलता।

गुफा नं० १- यह एक विहार है और इसके सामने एक दालान है। दोनों ओर तथा भीतर को तरफ़ कोठरी है। इसके खम्भों पर तथा भीतर दीवारों पर उच्चकोटि की नक्काशी और पच्चीकारी की अंकित हैं। अन्दर और भी बहुत से चित्र भिन्न भिन्न वीस विषयों के दिये हुए हैं। इसमें ईरान से आये हुए राजदूतों को भी दिखाया है। गुफा नं० २- यह भी पहलीकी तरह एक विहार है। बहुत सी खुदाई का काम किया हुआ है। और लगभग ३८ चित्र हैं। गुफा नं० ३- यह गुफा नं० २ के थोड़ी ऊपर बनी हुई है। यह असमाप्त ही छोड़ दी गई है। गुफा नं० ४- यह सबसे बड़ा विहार है। खुदाई का थोड़ासा काम भी इसमें किया हुआ है किन्तु चित्र अधूरा एक ही है। गुफा नं० ५-इसका भी काम अधूरा ही है थोड़ी बहुत खुदाई का काम किया हुआ है। यह भी एक विहार है। गुफा नं० ६ यह दो मंजिला विहार है और सबसे पीछेका बना हुआ मालूम होता है। खुदाई का काम और कुछ रंगीन चित्र का काम इसमें किया हुआ है। गुफा नं० ७ उपरोक्त विहारोमें इसकी शैली भिन्न है। इसमें सिंहासनारूढ़ शाक्य मुनि की मूर्ति है और उसके चारों ओर खुदाई की काम की हुई अन्य मूर्तियाँ हैं। रंगीन चित्र भी है। गुफा नं० ८- यह विहार सबसे प्राचीन है। कदाचित् यह ई० पू० पहली शताब्दी का निर्माण किया हुआ चैत्य है इसमें स्तूप तथा थोड़ा बहुत खुदाई का काम है। बादमें बनाये हुए ५ रंगीन चित्र भी इसमें हैं। गुफा नं० १०- यह चैत्य ई० पू० २ रो शताब्दी का बना हुआ है। इन गुफाअओं में यह सबसे प्राचीन है। इस में स्तूप बना हुआ है तथा वासिष्ठिपुत्र का एक शिला-लेख है। इसमें चारों ओर चित्र बने हुए हैं और कुछ लिखे हुए अक्षर देख पड़ते हैं। गुफा नं० ११- इस विहार के दोनों ओर दो कोठरियाँ हैं। दालान के बीचमें बुद्ध तथा किऐइ मनुष्य की एक एक मूर्ति बनी हुई है। इस के अन्दर की कोठरी में चित्र हैं तो अवश्य, किन्तु वे ख़राब हो गये हैं।