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अच्युताश्रम- यह अपनेको "चिदानंदानुचर" कहते थे । इससे यह विदत होता है कि, चिदानंद इनके गुरू थे। इनके शिष्य गोपाल याज्ञवल्की कृष्ण याज्ञवल्की के पुत्र थे। इनके प्रार्थना करने पर शिचकम्याण ने श्री अभनुघामृत की टीकाकी रचना की थी। इससे यह अनुभव किया जा सकता है कि शिवकम्याण इनके समकामीन अथवा किम्चित पूर्वकालीन हो गये है। उनका काल १५५७ ई० था। (ग्रंथ-भगवद्गीता (१६१४ ?) भ्रह्मकथा, राम वोविया (सं० क० का० सू०) अच्युताश्रम शिल्प- उपरोक्त उल्लेख के आधार से यह कृष्ण याशवल्की हो सकते है (१५५७)। अच्युताश्रम की श्रीभगवद्गीता १६१४ ई० मे लिखी गई और उनके शिष्य की प्रार्थना पर शिवकल्पनाएँ जरा संशयात्मक है। (ग्रंथ- शतक ज्ञान, शिवस्तुति, रामस्तुति (सं० क० का० सू०)। अछनेरा- संयुक्त प्रान्तके जिला श्रागराके किरवाली ताल्लुके मे यह एक गाँव है। और राजपूताना, मालवा और कानपूर के मार्ग में श्रछनेरा रेलवे जंक्शन है। उ० श्र० २७१० और पू० रे० ७७४६। यहाँ की जन संख्या ६००० के लगभग है। अट्ठारहवीँ शताब्दी में जाट लोगोँ की आबादी यहाँ बहुत थी और इस शहर का महत्व भी बहुत कुछ था। इसके बाद इसका लोप होकर जबसे रेलवे का जंक्शन हुआ तबसे यह फिर महत्व का स्थान हो गया है। १८५६ ई० के नियम की २० वीँ धाराके आधार पर यहाँकी शासनव्यवस्था की गई है। यहाँ व्यापार बिल्कुल नहिँ होता। यहाँ पर बिनौमला निकालनेका एक कारखाना है। यहाँ एक प्राईमरी स्कूल है। अछूत- भारत की कुछ नीच जातियाँ जिनको उच्चवर्णोके लोग छूना पसन्द नहिँ करते। (विशेष व्यौरेके लिये 'अस्पृश्य' देखिये) अज- (१) परमेश्र्वर का नाम। (नहि जातो न जायेहं न जनिष्ये कदाचन। क्षेत्रशः सर्व भूतानां तस्मादहमजः स्मृतः ॥ महाभारत। (२) प्रियव्रतवंशी ऋषभदेवके कुलोत्पन्न प्रतिहर्ता नामक राजाको "स्तुति" से उत्पन्न हुए दो पुत्रोँ में से यह ज्येष्ठ पुत्र था। (३) एक ऋषि और उसका कुल। (४) रघुका पुत्र। इनकी पत्नी 'इंदुमति' थी। 'श्रजविमलाप' नामक रघुवंशका भाग बडा मनोरंजक है। (५) (विदेह वंश) ऊर्द्ध्व केतु नामक जनकका पुत्र और पुरुजित जनकका पिता। (६) सोमवंशी कुमोत्पन्न जन्हुराज्ञाका पुत्रा पुरु राजा। उसका यह नामान्तर है। (७) भारती युद्ध का पांडव पक्षीय राजा (भारत उद्योगपर्व श्र० १७१) अजगर-यह प्रचराड सर्प अमेरिका के न्यूगिनी की खाडी के पास हिन्दुस्तान, पूर्वी द्वीपोँ आफ्रीका के दलदल के भगोँ, तथा अन्य उष्ण कटिबन्धके प्रदेशो में विश्षता से पाये जाते है। अजगर की लगभग चालीस जातियाँ है। उनमें से अधिक अमेरिका में है। मेक्सिको से ब्रज़िल तक के प्रदेश में एक जाति है जो मटमैली और सुधनी रंगकी होती है और जिस पर १५-१६ धारियँ पडी रहती हैँ। अजगरोँ की कई जातियोँ का स्वभाव बिलकुल शांत होता है। अजगर आपनेसे भि बडे प्राणियोँ को निगल सकता है। क्योँ कि उसका जबडा बहुत बडा होता है। अजगर ३० फीट लम्बा होता है और प्रायः ६० फीट तक लम्बा भी सुनने में आया है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्राकीन रोम शहर के उन्नति के समय १२० फीट लम्बा सर्प ब्रेगाडॉस के किनारे पर पाया गया था। इस अजगर को मारने के लिये रेम्यूलसके सैनिकोँने सब प्रकार के हथियार चमाये परन्तु कुछ उपयोग नहिँ हुआ। इस अजगर ने सिपाहियों की टोलियोँ को निगल डाला। आखिरकार उस पर बडे बडे यन्त्र चलाये गये तब वह मारा गया। इस अजगर के विषय में जो कुछ कहा गया है उसमें कुछ सत्यता तो अवश्य है परन्तु इसमें भी सन्देह नहिँ है कि इसकी लम्बाई के विषयमें अतिशयोक्ति की गई है। यह बिलकुल सत्य है कि अजगर पूरे बकरे, सूअर तथा मनुष्य को निगल जाता है। १८६१ ई० में एक अजगर ने एक कम्बल खा लिया था। परन्तु उसे वह पचा न सका। इस कारण वह चार सप्ताह पेटमें रहकर फिर मुँह से निकल पडा। इसके बाद वह अजगर शीघ्र ही मर गया। अजगर जातिका उल्लेख प्रायः वैदिक साहित्य, विशेष्तः अथर्ववेद में मिलता है। यज्ञ में दी जाने वाली बलिकी सूची में अजगर का भि नाम है। पुराणोँ में प्रायः राजा नल की कथा में अजगर का उल्लेख आया है। निद्रावस्था में दमयन्ती को छोड कर जब राजा नल चले गये थे तब उनका