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से आया तो वह सम्भावनीय नहीं है, और इतना फरक कैसे पड़ता है इसका भी निराकरण नहीं हुआ। दोनों रीती से तैयार किया हुआ आठ महीने रखकर देखने से भी उनके वि - गु -में कुछ फ़रख नहीं देख पड़ा । उसी प्रकार विधुसफुल्लिंग का भी कुछ परिणाम नहीं देख पड़ा । तबसे ऐसी शंका होने लगी है की हवा में नत्रकी अपेक्षा अधिक वि-गु-का कोई एक वायु (Inert gas) होगा । जिस कारण से यह फरक पड़ता होगा । इसका पूर्ण nirakaran लार्ड रेले और सर विलियम रमसे ने किया । उस समय हवा का नत्र सर्व नत्राम्भवी है अथवा नहीं, और वातावरण नत्र तथा दूसरे पदार्थों का नत्र एक हीं है अथवा भिन्न भिन्न है , यह प्रश्व उठा । सर हेनरी क़भेंडिशने तो १७५१ ने ई ० में यह प्रश्न करीब करीब हल ही करदिया था । १५६४ ईo में रेले और रमसेने ब्रिटिश असोसिएशन को वातावरण में एक नये वायु के आविष्कार की खबर दी । इस वायु पर किसी प्रकार का रासायनिक प्रभाव नहीं हुआ । इसलिए इसका अचेस्ट अथवा निर्गुण ऐसा नाम रखा गया इस नवीन वायु के गुण-धर्म सम्भंधि जिज्ञासा रॉयल सोसाइटी में जनवरी १५६४ ई० में भेजी गयी, और यह नविन वायु वातावरण में से पृथक करने का प्रयोग बड़े प्रमाण में आरम्भ किया गया । वातावरण में से निर्गुण (जड़) वायु दो तरह से पृथक किया जाता है । पहेली रीती कण्डिशनद्वारा किगई थी किन्तु उसमें बहुत से सुधर किये गए है । इसमें हवा और उज्जन के मिश्रण पर विधुसफुलिंग की क्रिया की जाती है और तैयार हुवे नत्राम्लका शोषण पतले अल्कोहल (Alcohol) में होता है । इस मिश्रण में से नतरलुफ्त हुआ अथवा नहीं, यह देखने के लिए एक विच्छिनकिारणदर्शक यन्त्र होता है । इसके बारीक छिद्र में से देखने से यदि नत्र होगा तो एक पीली रेखा दिखाई देगी । यह पीली रेखा जिस समय बिलकुल गायब होजाए उस समय नत्र का पूर्ण रूप से लुफ्त होना समझना चाहिए| इसके बाद अधिक शक्तिमान यन्त्र, विछिनकिरण से देखा जाता है| अचेस्ट्का विछिनकीरण पर आश्चर्यमय प्रभाव होता है| परिस्थितिके अनुसार वह रक्त के समान लाल किरण होते हुय भी फौलाद के समान नीला हो जाता है विधुतप्रवाह का जोर तथा अन्य भार इत्यादि योग्य परिस्थिति में होने से अचेस्तका विछिनकिरण पर नीले रंग का प्रभाव पड़ता है|

दूसरी क्रिया के अनुसार हवा के नत्र का शोषण मग्न (Magnesium) से किया जाता है । इसके लिए मग्न धातु का बुरादा मजबूत काच अथवा लोहे की नली में भरना चाहिए| इस नली के रक्तोष्ण होते ही ताम्रसे निष्प्राण की हुई हवा इसी रक्त मग्न में से लेजानी चाहिए| मग्न धातु और निर्जल खट प्राणीदका मिश्रण, केवल मग्न धातु के पास मिश्रण करने के मुकाबले में अति त्वरित होता है| इस प्रकार तैयार किये हुए अचेष्ट की घनता १६’६४ होती है ।

अचेस्ट पानी में विद्रावय होता है । १२ मान पर लग भग ४ प्रतिशत प्रमाण में पानी में विद्रत होता है अर्थात नत्र की अपेक्षा २ १/२ गुना अधिक अचेस्ट विद्रत होता है| प्राय : सब ही वायु के विशिष्ट ताप का गुणाकांक 1.4 होता है, परन्तु अचेस्ट के विशिष्ठ ताप का गुणांक १. ६७ होता है| हवा के मान से अचेस्ट की वक्रीभवन्ता केवल ६. ६१ है । अचेस्ट का हवा के मान से १. २१ होता है| हीं ऊच मानका परिणाम अचेस्ट पर क्या होता है वह निम्न लिखित कोष्ठक में दिखाया है |

नाम स्थित्यंतर दर्शक उक्तमान (क्रिटिकल टेम्प्रेचर) स्थित्यंतर दर्शक भार (क्रिटिकल प्रेशर) उत्कवथनांक (बॉइलिंग पॉइंट) हिमांक (फ्रीज़िंग पॉइंट
नात्र -१४६'० ३४.० -१६४.४ -२१४.०
अचेष्ट -१२१'० ४०.६ -१५७.० -१५६.६
प्राणो -११५.५ ४०.५ -१५२.७