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ञप्रवेरि न्हन्कोश (ञ्प्र) ७४ ञप्रधोरी पन्थकी ञप्रधुमिक स्थिति-ञप्रजकल इन्के चिपिय के रोख्ने पर भि इन नायि साधुक्शोनो उस मे ञप्रनेक घ्रिरिन थथ निन्धनीय विचर फिले रहे समाय तक ञप्ने यह किया वैसे हि जारि हे। १६७ ई० मे लन्धनक तवेनो नामक लेकह रकखि जब थक इन्कि माङ ने पूरि की गैइ। ने इन्का वर्नन किया हे। वम्बयि प्रन्थके मधोच द क व्रक्मान नामक एक एएयाएदन मेदिकल कजिलेके एक गावोमे जो देब्क (debca) के ञप्रफिर्स्के ञप्नुसन्धन्के ञधार पर, एछम नाम्से प्रसिध हे इन्कैइ जो थोदी बहुत वस्ती हे वाल्पह्र्ने एक ञप्वादकि कथ वर्नान कि हे। उस्के विश्यमे उस्ने लिख हे। इस्ख वर्नन वर्द्के उन्कि कथन हे कि पक्शाब्के पतियाले राज्यमे ग्रन्थ (wards view of hindus) मे भि मिल्त रकह्नेवाला एक मलोहार जाथिका मनुश्य निथ्य हे। तद सह्यने ञप्न पक्श्यम भर्तह कि यथ्र मे बीख माङा कर्थ थ। उस्से एक ञप्रद्से बेइत हो

ञप्र्बु पहदके ञप्रवधदोको वर्गान किया हे        गयि ञप्रो वह उसीके शिश्य बन गया। वह 

(tods travel in w. india). बद्रिनारायग, नैपाल, जगन्नथ जि,मथुरा उन्का कथन हे कि फथेह पुरि बनामक एक इथ्यधि भ्रमरन कर्थ हुआ ञप्रन्थ्मे भरत्पूर विक्यथ ञवभ्दे पन्थि जकयि पवर्श थक एक हि पहुन्चा। वाथ्वीत्मे उस्ने इस बान्ति वर्नन किया घुफमे रकह्त थ। ञन्थ्मे उसिकी ञप्र्ञनुसार वह हे की बवह सब जातिका छुप्रा हुआ आन्न खा उसी गुफा मे जीवीथ ही चुन दिया गया लेना हे क्योन्कि जाथि बेध्मी उस्का विश्वस (समाधिस्तिथि कर दिया गया)। ताद्सह्वसे वार्था नहि हे। यध्यपि वह स्वयम नर-मान्स बख्गा

कर्नथे समय एक महाश्यनी उन्हे सओओछिथ    नहि कर्था क्योन्की उस्मे उत्नी शक्थि रक्ने 

किया थ कि जब वह्ह ञप्ने म्रुथक भैका शव वाले ञ्प्रो मन्थ्र साम्त्रसे परिपूर्न श्रधोगि नग्मस्

स्मशान मे झ रहा था थो एक ञब्धद्ने उस    भि खाते हे। जिन्को इत्नि शथि नही होति वह 

शब्को छत्नी वबनान्के लिये माग लिया। मनुश्य्कि खोप्दिम भोज्न जल्मपान कर्ते हे। कालिका देविको बलि चदाकर भोग लगानेके घोदेके मानसिके ञप्रेतिरिक ञ्प्रन्य सच म्रुतक लिये ये मनुश्य्को पकद्थे थे पशुशका मान्स यह कते हे। (martin buchanan and e. india ii घोदेके मन्दसिक लिए ही केवल क्यो प्रना नही 402 f) बक्नन सहयने ञप्नी किया हे की १६ हे, इस विशय पर निश्यछय रूपसि कुछ कह्ना वी शथब्दिक ञप्रम्म्के घोर्हपुर्मे एक ञव्दगद वह्रसे कतिन हे। कुछ्का मत हे कि गोदे और इन्के पहुन्च और रजाके समीप पहुन्च कर उस्पर गन्धि पन्क्ति नाम्मे समान्ता होनेके कारङ्हि ये उस छीजे फक्ना ञप्रम की। रजाने कजिल्ल ञययधेशके नहि खते। कुश्का कतन हे कि पुर्व काल्से हि यहा यह समाव्छार भेज। ञययधीश्ने नगर घोदे गोव की बान्थि प्विथ्र माने गये हे। ञ्प्रथ निर्वासन्क दयेदा द्दिया। लकिन्तु न्ययधीश थत्कल उन्को निशिद माना हे। हि विमार पद गया और राजाके पुथ्र का तो देहान्थ श्रव्दगद पन्त्का ञ्प्रन्य हिन्दि घमोसे सम्भन्द् थक हो गया। लोगून्की धर्गा थि की यह साधुके श्रदोरी श्रप्थि हि क्रियापे लिप्त रह्ते हे। उन्को ञप्मान्के कार्या हि हुआ। ( the revelations धूस्रे धर्म सम्भन्दि विछार ञ्प्रभि तक भि बली

of an orderly) नामक पुस्थके इन लोगून्को  भान्ति विधिन नहि हुइ। काशिके समीप्के 

कथ्योके बदे रोमान्श्कारि वर्यान दियी हुएए हे। ञप्र्दुनिक श्रवगोकि उत्पथि महात्म किनाग्मसे ञन्थ्मे लेख्कने इन सब प्रथशोको कानुन द्वरा हुइ हे। किनारम्के गुरू कालुराम गिर्नाअर पर्वथ्पर बन्धन कर्नेकि प्रतर्थन स्सार्कार्से बदे प्रभबव्पुर्न १ वि० शतब्दि मे रतह्ते थे। कुछ ञ्प्रवग्दि ञप्रज शब्धोमे कि हे। इस पुशथक्के पश्चत हि सदको पर कल किनारामि के नाम्से भि प्रस्यात हो रहेहे। बिल्कुल धूम्नेकी प्रथ कानुन ध्वरा बन्धन कि इन्के धर्मिक विछार तथा ञ्प्रन्य प्रत्यये प्र्महम्स गयी और मनुश्य मन्सम्शन भि कानुन्की दयेद सादुप्रोसे मिल्ती जुल्ती हुइ हे। पर्म्हम योग्य ञन्प्रोद निक्शित हुअ। त्थापि १००७ ई० व्रिज्तस्तिथमे निम्न रह्ते हे और उन्के लिये सुख् मे उज्जैन्मे एक एइस ही सधुसक्शेक्कि मयेदलि धुक्क समान हे। सम्सार्से बिल्कुल ञप्रलिप्त रह्ते पहुन्चि और एक बक्रि वहान के अधिकारियसे हे और भोजन्दि के विश्यमे भि कुछ विछार नहि माङी न मिल्ने पर वे क्रुध होकर स्मशान पर होती। पहुन्च कर दशवोन्को मान्स बक्शे कर्ने लगे। जीवन्के साध्नोके विशमे सर्मङीपत वाले भि बिल्कुल