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पेश्वा तथा अन्य उपाधिकारी उनपर से उन्हें देखते थे। आधुनिक काल में अन्य अविष्कारों के साथ साथ इस कला में भी बहुत कुछ सुधार हुआ है और नई नई चीज़े बनने लगी है। पेशवाओं के शासनकाल में महराष्ट्र देश में इसका खूब प्रचार था। सवाई माधवराव के विवाह के उपलक्ष में आतिशबाजी का जो वर्नण मिलता है उसका उल्लेख निचे देते है।

आकाश मण्ड्ल के तारागण - यह आतिशबाजी आकाश में जा कर फट जाती थी और इसमें र्ंग-बिरंगे तारे दिखाई देते थे। 
नारियल के पेड़ - इसमें आग लगते ही तोप के समान आवाज़ होती थी र्ंग- बिर्ंग के शाखाकार तथा सर्पाकार दृश्य देख पड़ते थे,
प्रभा-चमक- इसमें सुनहले तथा रुपहले घूमते हुए चित्र दिखई देते थे।
इसके अतिरिक्त और भी नाना प्रकार के बाण फूल इत्यादि होते थे।
आजकल इस देश में हवाई जहाज़, चन्द्र्जोत, छुछुंदर, साँप, बाण, र्ंग-बिरंगे तारे, फुलझड़ी, महताबी, सिग्घाडा, चरखी, अनार तथा लट्डा देख्नने में आती है।
युरोप मे भी आजकल इस सम्बन्ध में बहुत से नए नए अविष्कार हुए है और वे भारत में भी अब आने लगे है। इसलिए इस देश का आतिशबाजी का व्यव्यसाय बहुत धीमा पड गया है। यदि विद्वान तथा रसायनशास्त्र वेत्ता इस ओर कुछ ध्यान दे तो इसका फिर से पुनरुधार हो सक्ता है। 
अगिनपुराण-इस पुराण के नाम से ऐसा भास होता है कि इसमें अग्नि का विशेष वर्नण किया होगा, किन्तु यथार्थ में ऐसा नहीं है। अग्नि द्वारा जो विद्यासार वशिष्ठ को प्राप्त हुआ था उसी कै इसमें मुख्यत:उल्लेख है। पुराणों में सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा व्ंशानुचारिता - इन्हीं पाँचों लक्षणों का बहुधा समावेश होता है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक विषय होते है। किन्तु अग्निपुराण में इन सबका विशेष महत्व नहीं देख पड़ता। 'परा'और 'अपरा'इन्हीं दोनों विद्याओ पर अधिक विवेचना की गई है। मानव समाज के हित के भी अनेक विषय इसमें भलिभाँति दिए हुए है। साधारण रीति से भी इसका निरीक्षण करने पर भी यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन काल का यह एक विविध-विषयक स्वत्ंत्र ग्यान कोष है। अवतार-चरित्र, रामायण आदी इतिहास जगत का उत्पत्ति विवेचन, ज्योतिशास्त्र, वैद्य्शास्त्र, छ्न्द्शास्त्र, निट्य शास्त्र काव्य, व्याकरण, तत्व-ज्ञान, नीतिशास्त्र आदी अनेक विषय इसमें दिए हुए है। पुराणों में यह तामस श्रेणी का ग्रंथ समझा जाता है, क्योंकि संसारिक विषयों को छोड कर परमार्थ स्म्बन्धी बांते इसमें बहुत कम अंशो में है। इसमें किसी खास धर्ममार्ग का समर्थन नहीं किया गया है। किन्तु ग्रंथ देख्नने से यही विदित होता है कि ग्रन्थ निर्माण समय में शैव धर्म का ही ज़ोर रहा होगा और मन्त्र तन्त्र पर लोगों की विशेष श्रद्धा रही होगी।
आनन्दाश्रम ग्रंथावली द्वारा प्रकाशित अग्निपुराण में ३८३ अध्याय और ११४५७ श्लोक है। नारद पुराण में १५००० और मत्स्य पुराअण में १६००० श्लोक अग्नि पुराण में बताय गये है। नारद पुराण और इस पुराण की जो विषयानुकमणिका लिखी है, उसका भी पता अब के अग्निपुराण में नहीं लगता। बल्लालसेन ने भी जिन अवतरणों का अगिन्पुराण मे उल्लेख किया है वे सब भी वर्तमान अग्निपुराण में नहीं मिलते। इन सब बातों से यह स्पष्ट होता है कि अग्निपुराण क कुछ भाग लुप्त हो गया है। इसका रचना काल भी निशिच्त करना कठिन है किन्तु ऐसा अनुमान कर सकते है कि ई• ५ वीं शताब्दी के पश्चात और यवनों के आक्रमण के पूर्व इस ग्रंथ का संकलन हुआ होगा। 
आधार ग्रंथ- द्त्त का अग्निपुराण (वेल्थ आफ इण्डिया सीरीज़) ; काले का पुराण निरीक्षण विन्टरनीज़ की हिस्ट्री आफ संस्कृत लितेरेचर (German Book) ! आसन की हिन्दू क्लासिकल दिक्शनरी । अग्नि पुराण - आनदाश्रम  आवृति ।
इस पुराण में अनेक विषयों के समावेश होने तथा अन्य पुराणों के विस्तार पूर्वक वर्णन होने से अन्य पुराणो के प्रचीन हिन्दुओं को सामाजिक और राजकीय व्यावस्था का अच्छा ज्ञान हो सकता है। इसलिये इस ग्रंथ का विस्तृत वर्नण दिया जाता है। और उन विषयों का,जिनके प्रति पाठ्कों की   अधिक सम्भव है, का अधिक विस्तार से वर्नण किया गया है। अग्नि पुराण में अनेक शास्त्रों का विवेचन है। भिन्न भिन्न शस्त्रों के लेखों के समय अग्नि-पुराण का उल्लेख करना पड़ता है, अथवा   उसके शास्त्र विवेचना स्वरूप देना आवश्यक है। इसलिए अग्निपुराण का यथार्थ स्वरूप यहीं देना युक्ति-संगत होगा।