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कवि का जन्म तिरुवादपुर में हुआ था। इन्होनें तामील भाषा में अनेक ग्रंथ लिखे थे। कपिलर पर एरका समकालीन था। उक्त्त पुराण में तीन विद्या प्रेमी राजाओं के नामों का उल्लेख है, पर कुल नाम इस तरह से दिए गये है- (१)पलनीसके निकत 'पेहन' (२) उत्तर में पशिचमघात पर 'पारी, (३) दक्षिण आरकाट में तीरुक्कुवुर के पास 'कारि'(४) तिनावली के पशिचम पाड़ितल पहाड़ी के पास 'आई'; (५) धर्मपुरी अथवा मैसूर के तगडूका आदिदमन (६) मलनाजू का 'नल्लि'; (७) सीलका कोल्लि; (८)मैल के पास का 'ओरी', (९) उरैपुर का चोल और (१०) बंजी का 'चेर' ।

कपिलर गजवाहु राजा का समकालीन था। इसी से डा• हार्नेलि ने अनुमान किया है कि कपिलर ई• सदीकी दूसरी शताब्दी में था और इतने पुराने जमाने में भी अग्नि से उत्पन्न कुलों की कल्पनायें प्रचलित थी। [ ई• ऐडी• सल्लि• ३४ ]
अग्निक्रिडा - (आतिशबाजी) मानव समाज अपने मनोरंजन के लिए नाना प्रकार की सामग्री का अविष्कार किया करता है। श्र्त: ज्यों त्यों उनका प्राचार बढ़ता जाता है वे व्यापार कए लिए तैयार की जाने लगती है। इसी भाँति अग्नि-क्रीड़ा की भी हाल है। इस देश की प्राचीन ६४ कालाओं में इसका वर्नण कहीं भी नहीं पाया जाता है। अत: निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इस देश में इसके बनानेवाली कला कब से और किस ने प्रारम्भ की। अग्नि, ज्वलन्त तथा विस्फोतक पदार्थों के मिश्री करने से ही मनुष्य के नेत्र मनोरंजन के लिए ही इसका अविष्कार हुआ है। जिन प्दार्थों से बारूद तैयार की जाती है उनहीं वस्तुओं के हेर-फेर से आतिशबाजी भी तैयार की जाती है। महाभारत में जिस शतघ्नी और युधयन्त्र आदी शब्दों क ज़िक्र आया है, उसका आज कल का पर्यायवाचक Machine gun ही है अथवा नहीं - यह निश्च्य रूप से नहीं कहा जा सकता । विश्वसनीय तथा थीक थीक इतिहास ना होनी के कारण हम लोगों को बहुधा कल्पना शक्ति पर ही आव्लम्बित रहना पड्ता है। कुछ लोगों का कहना है कि बन्दूक की बारूद , पटाखे इत्यदि बनाने की कला पहले पहल चिनियों ने ही ढूंड निकाली थी और धीरे धीरे वहीं से अन्य देशों में फैली । रोमन सरकसों में भी आतिशबाजी का खेल दिखाया जाता था। युनान के जल युधों में इसका ज़िक्र आता है। रोमन बाद्शाह कारिनस और डायओकिसन के प्रति सम्मान दिखाने के लिए आतिशबाजी का प्रयोग किया गया था। 'क्लादियन' ग्रंथ मे ईसा की ४थीं शताब्दी में भी चक्र के समान घूमने वाली आतिशबाजी का उल्लेख मिलता है।
 प्रचीन यूनान रोम आदी देशों का ध्वास होने पर कुछ काल के लिए यह कला ठंडी पर गई थी। परन्तु (crusades) धर्म युध के शहीदों ने पूर्वीय् देशों से बारूद तथा विस्फोतक पदार्थ बनाना सीख कर इसका योरप में फिर से प्रचार किया था। जिस भाँति आजकज विजयादशमी के अवसर पर इंगलैण्ड तथा फ्रान्स आदी देशों में आज भी यह प्रथा प्रचलित है। 
शोरा, गन्धक और लकड़ी का कोयला ही बारूद बनाने के मुख्य साधन है। उसी में लोहे का बुरादा मिला कर आतिशबाजी भी बनाई जा सकती है। भाँति भाँति की आतिशबाजी के लिए भिन्न-भिन्न पदार्थो को मिलाना पड्ता है। सबका तो स्थानाभाव के कारण यहाँ वर्नण होना आसम्भव है किन्तु पाठ्को के मनोरंजन के लिए दो एक क उल्लेख नीचे किया जाता है।
                         च्ररखी बनाने की बिधी 
 बारूद                                                 २४ भाग
 शोरा                                                  १०  "
 गन्धक                                                 ७  "
 कोयले का चूरा                                           ५  "
 फौलाद का चूरा                                           ८  "
                          हरे तारे बनाने की बिधी 
 पटैसीअम क्लोरेट                                         १० भाग
 बेरियम टाईट्रेट्                                           ४८  "
 गन्धक                                                 १२  "
 कोयला                                                 १   "
 लाख                                                   ५   "
 कपूर का रस                                             ८   "
 तांबा का चूरा (copper)                                    २   "
अंग्रेजों द्वारा जो पेश्वाओं के दग्यागेंका वर्ण: हुआ है और उनके शासनकाल का जो ऐतिहासिक हाल मिलता है उसे पता चलता है कि उस समय भी विवाह इत्यादि उत्सवओं  में आतिशबाजी छोड़ी जाती थी। बहूधा पहाड़ियों के निचे आतिशबाजी छोड़ी जाती थी और