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अखनिटी ३६५ ___ ज्ञानकोश (अ) ३१ अगमुदैयन यह रिका हो सकता है साल पुराने फूलके गुच्छोपर विल्लीकी पूछकी तरह ____ शीतप्रगत देशोंके बहुत प्रचीन जमीनके सैकड़ों पुंकेसर (लम्बे लम्बे धागे जिनका सिरा थोमें इसका इससे मिलते-जुलते पेड़की कुछ मोटा होता है) निकलकर छोटे छोटे खिले हुए जड़े मिलती है। इससे मालूम होता है कि पहले स्त्री-पुष्पोंमें गर्माधान करते हैं। नर- पुष्पोंमें जहाँ और अव भी यह पेड़ पृथ्वीके एक बहुत बड़े हिस्से से फूल निकलता है, पुष्पासन उसी जगह होता है। में पैदा होता है। भारतवर्ष में इस पेड़को बहुत परिकोश पांच छः छोटी छोटी हरी पत्तियोंका प्राचीन कालसे लोग जानते थे और उसी जमाने होता है और उसीमें पुकेसरोका गुच्छा रहता है। से लोगोंको इसके गुण-दोष ज्ञात थे। स्त्री-पुष्पोंमें पुष्पासन प्यालीके आकार का होता ___उपयोगिता-इस पेड़में सबसे अधिक महत्व- | है और अण्डाशय उसीमें चिपका रहता है। पूर्ण भाग इसकी लकड़ी है। लकड़ी सुन्दर और परिकोशमें चार पत्तियां होती हैं। अंडाशयके मजबूत होती है। इसलिये नकाशीदार दराज- पाससे बीजांड सीधा ऊपर आता है। इसके वाली सन्दुक और बन्दूकोंके दस्ते बनाने में इसका फलमें गूदा या गिरी ऊपर और गुठली भोतरकी बहुत उपयोग होता है। काश्मीर और पंजावमें श्रोर रहती है। दो सीपोंकी तरह इसका छिलका इस लकड़ी पर पञ्चीकारी और नक्काशी का काम गिरीको ढांके रहता है। वीयामें गिरी रहती है बनाकर बड़ी फैसी चीज तयार की जाती हैं। और इसीम अंकुर होता है। धड़ और शाखोंके मेलकी जगह जो गाठे लकडीमें इस पेड़के लिये गहरी बलुई चिकनी मिट्टीकी होती है इनकी पहले फ्रांसमें बहुत माँग थी। जरूरत होती है। इसे काफी हवा और सूर्य इस पेड़ की छाल और फल का छिलका स्तंभक प्रकाशको आवश्यकता हाता ह । बाजर प्रकाशकी आवश्यकता होती है। बीजसे ये पेड़ (स्तंभन करनेवाला) होता है। इसलिये उनका उप पैदो होते हैं। किन्तु खास तौरसे तयार करनेके योग दवाशी में और रंग बनाने में होता है । कच्चे लिये कभी कभी इसका कलम भी लगाते हैं। फलौका अचार बहुत बढ़िया होता है। कच्चे बोनेपर पहलेही जाड़ेमें पेड़की हिफाजत काफी फलकी गिरी बहुत जायकेदार होती है। फ्रांसमें करनी पड़ती है। बीजसे तयार होनेवाले पेड़ बीस इस गिरीसे बहुत बढ़िया तेल काफी तायदादमें बरस बाद फल देते हैं। एक साल पुरानी डालोंमें निकाला जाता है। अखरोट में एक तरहके बडे फल लगते हैं। इसलिये फलोको तोड़ते समय फलकी भी पक किस्म है, पर उसकी गिरी किसी नई शाखाओं को बचाने की पूरी कोशिश की काममें नहीं आ सकती। किन्तु उसके छिलके जाती है।। जवाहरातके बक्स बनानेके काममै आते हैं। भारत [आधार ग्रंथ-वाट-कामर्शियल प्राडक्ट्स और मैं इस पेड़की छालका उपयोग दवाओं और दन्त- ब्रिटानिका ] मञ्जन वनानेमें होता है। फल बहुत पुष्ट होनेके अखा-बर्माके पूर्वीय भागमें शान नामक कारण काश्मीरसे अधिक प्रमाणमें बाहर भेजा राज्य है. उसके पठारोंमें बसनेवाली यह एक जाता है। फलसे अच्छा तेल निकलता है और जङ्गली जाति है। राज्य भरमें इनकी जनसंख्या छाल चमड़ा कमाने और रंग तयार करने में ली| लगमग २६००० है। इनकी भाषासे यह अनुमान जाती है। इसकी पत्तियाँ जानवरोंको खिलाते भी किया जा सकता है कि इनका सम्बन्ध कभी है। इसकी एक घन फुट लकड़ी का वजन करीव तिब्बतसे भी रहा होगा। इनका चीनियोसे अब करीव ४० पौंड होता है। भी घनिष्ट सम्बन्ध है, और कभी कभी उनसे विवाह पेड़ बड़ा होता है और पत्तियाँ गुलाबके सम्बन्ध तक हो जाता है। चीनियोसे ये कुछ पेड़की पत्तीकी तरह । इस पेड़से सुगन्धियुक्त रस अधिक लम्बे होते हैं। इनका रंग भी कुछ काला काफी निकलता है। पत्तोंके गिरनेसे डालियोमें होता है। ये भाँग और अफीमका व्यापार अधिक जो गड़हे हो जाते हैं. काफी गहरे होते हैं। पत्तेकी करते हैं। कुत्तेका मांस भी भोजन करते हैं। ये अपने बगलमै ( यानी पत्तेके नीचे जहाँ वह शाखासे | पूर्वजों तथा प्रेतात्माओंकी पूजा करते हैं। मृत मिला होता है ) एक या अधिक अंकुर फूटते हैं। सम्बन्धियोंका श्राद्ध करते हैं । मृतक गाड़े जाते इसका फूल पपीता या कोहँडेके फूलकी तरह है, और उस समय भैसेका बलि दिया जाता है। एकलिंगी होता है। श्रर्थात् फूल या तो पुकेसर | (इं० ग०५) या स्त्री-केसर युक्त होता है और बहुधा दोनों अगमुदयन-सम्पूर्ण तामिल देशमें यह मेलके फूल पकही पेड़पर दिखायी पड़ते हैं। एक जाति पायी जाती है। कल्लन् तथा मरवन्