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कटवाया और अफजलखाँकी सेनाके आनेके लिये प्रतापगढ़ तकका मार्ग साफ करवा दिया। मर्गमें भी अफजलकी सेनाके लिये रसद इत्यादि का पूरा-पूरा प्रबन्ध करा दिया तथा हर प्रकारकी सुविधाका प्रबन्ध कर दिया। किन्तु साथही मार्गमें शिवाजीके सैकड़ों गुप्तचर छूटे हुए थे जिससे खाँके प्रत्येक कार्यका उन्हें समाचार मिलता रहे। इधर कृष्णाजी भास्कर शिवाजी से विदा होकर पणतो जी गोपीनाथ को साथ लिये हुए अफजलके पास बाँई अया ,और शिवाजीका सब सन्देशा कह सुनाया और अपनी ओरसे यह भी कह दिया कि खाँके ऐश्वर्य तथा बलसे शिवाजी बड़ा भयभीत हो चुका है और वह समझौता करने के लिये बड़ा उत्सुक है। अत:खाँको भी इस अवसरसे लाभ उठाना चाहिये। प्रतापगढ़ जाकर वह शिवाजीसे मिलकर तथा उसे फंसाकर बीजापुर लेकर चल दे। अफजलखाँ को यह विचार बहुत पसन्द आया और उसने शिवाजीके पास समाचार भेजवा दिया कि वह शिवाजीसे मित्रभाव से मिलनेको प्रस्तुत है और शीघ्र ही प्रतापगढ़ आकर उससे भेंट करेगा। इधर अफजलखाँको अपने शारीरिक बलका बड़ा घमंड था,अत: उसे किसी प्रकारकी भी शंका नहीं थी। इसके अनुसार अफजलखाँने बाँईसे अपनी छावनी उठायी। शिवाजीने जो मार्ग तैयार कर रखा था,उससे होते हुए रडतोंडीका घाट पार कर कोयना खोरामें प्रतापगढ़के नीचे पार नामक एक छोटेसे गाँवमें उसने अपना डेरा जमाया। गढ़की दीवारसे करीब चौथाई मील पर एक स्थान था। वही स्थान मुलाकातके लिये निश्चित किया गया और दूसरे दिन संध्या समय दोनोंका वहीं आकर मिलना निश्चित हुआ। जिस स्थान पर भेंट होना निश्चित हुआ था वहाँ पर शिवाजी ने एक कीमती झलरका शामियाना खड़ा किया। वह भली भाँति सजाया हुआ था। नित्यके अनुसार स्नान भोजनादि करनेके उपरान्त शिवाजी दोपहरमें थोड़ी देर सोये,तत्पश्चात् वह भवानी माताके मन्दिरमें गये और वहाँ पर उन्होंने संकट पड़नेपर सहायता करनेके लिये सच्चे हृदयसे प्रार्थना की। फिर उन्होंने तानाजी,मालुसरे,मोरोपंत पिंगले और नेताजी पालकर नामक अपने विश्वास पात्र सरदारोंको बुलाया और कहा कि यदि खाँने धोखा देने का प्रयत्न किया हो तो ऐसा प्रबन्ध होना चाहिये कि वह वापस न जा सके। इस लिये उसके सेनाके पीछे और अगल बगल अपने आदमियोंको तैयार रक्खो, गढ़ परसे सिंघा बजते ही ये लोग बीजापुरके लोगों पर हमला कर दें। इसके पश्चात् उन्होंने अपनी प्रजा ,सरदार तथा नायकोंको इकट्ठा करके कहा कि यदि वह युद्धमें काम आवे तो वे लोग संभाजीको गद्दी पर बैठाकर नेताजी पालकरकी अनुमतिसे राज्य चलावें। अन्तमें वह अपनी माताजीसे विदा माँगने गये। तदनन्तर वह खाँके साथ मुलाकात करने की तैयारी करने लगे। उन्होंने नीचे जिरह वख्तर पहना और ऊपर एक अंगरखा पहना और सिर पर शिरस्त्राण पहन कर उस पर एक फेंटा बाँध लिया। बाँएँ हाथमें उन्होंने बिछुआ बगनहा पहना और दाहिने हाथकी आस्तीनमें एक खंजर छिपाया।इस प्रकार आत्मरक्षाका पूरा प्रबन्ध कर शिवाजी जिववा महाल ,संभाजी कावजी और एक तीसरे मनुष्यके साथ गढ़से नीचे उतरने लगे। इधर अफजलखाँ भी पालकीमें बैठकर गढ़पर चढ़ रहा था। पालकीके साथ कृष्णाजी भास्कर और पीछे अनेक सशस्त्र लोग थे। कृष्णाजी भास्करने खाँसे कहा कि यदि आप शिवाजी को पकड़ना चाहते हों तो अपने साथके लोगोंको पीछे ही छोड़ देना उचित होगा। खाँको यह बात उचित जान पड़ी और उसने यह बात स्वीकार कर ली , और शिवजीके साथ जितने आदमी थे उतने ही आदमी अपने साथ भी लिये। खाँके साथ सैयदबन्दा नामक एक मोटा ताजा और बहादुर सिपही था । उसे देख कर शिवाजीने खाँसे कहला भेजा कि शिवाजीको उस मनुष्यसे भय लगता है,इस लिये खाँ उसे साथ न लावें। यह बात यदि अफजलको स्वीकार हो तो वह भी अपने साथका एक आदमी कम कर देंगे,खाँने यह बात भी स्वीकार कर ली,शिवाजीने भी अपने साथ का तीसरा आदमी पीछे छोड़ा। खाँ शामियानेमें आ रहा था। उसका स्वागत करनेके लिये शिवाजी आगे बढ़े वे उपरसे देखनेसे नि:शस्त्र मालुम देते थे,परन्तु खाँकी कमरमें एक तलवार लटक रही थी।यह देखकर खाँने समझा कि शिवाजी को पकड़नेके लिये यह समय ठीक है। उसने शिवाजीसे असभ्यता पूर्वक हंस कर पूछा कि तुम गँवार देहाती आदमीके पास यह शामियाना और उसमें दिखाई पड़ने वाला यह सब ऐश्वर्य कहाँसे आया? इस पर शिवाजीने क्रुध्द होकर कहा कि यह सब वैभव अगर हम लोगोंके पास न रहेगा तो क्या तम्हारे जैसे भठि-