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अपुष्प वनस्पति

पेशिवीमैं दो तन्तु-एक नाहीं और लम्बा होता है । फर्द जातियोंर्मे दो समान लिगटाध षेशीमैं से रिस्क- रूफर संयोग पाते है

शुद्ध पूरै रदृका होना है । इनमे बहुत सौ जातियाँ मीठे ब्रखमें ओर आई मूमिपर मिलती है । समुद्र मैं भी जात सी जातियरेंहँ 1 द्दनमैं कई समय पिरनदिदूका० प्राप्त होते हैं है ८१३' पिट सत्व ( 5७८७1; ) सर्वना मिलता है । कुछ वनस्पतियाँ" एक येशौमय हैं राया कुरू सातुप्रय हैं । त्तन्तुमय

ज़दृतियोंपै भी कई रफमें जातियाँ निकलती हैं, .

स्तरोंमैं नहीं गिकक्यों ।

वक पेशीमग्र ब्राब्रिमै प्रदृयैफ पेशीके महीन तो षाखके समान तन्तु होंबैहैं । एन तन्तुओकेउक्षाध से थे इधर उधर घूम सकते हैं । प्राथेफ पेशीमै

एक एक केन्द्र जीवद्रव्य तया हरि दुध्यअय शरीर .

होता है । इनमें की कुछ जातियोंमे पेशी खतंब्र- रूपसे सत्रार करती है और फुव्रपै दो दी न्दार चार एकम प्रिलकर संघपनाकर रहती है । लोल- ब्दास्स नामकी जाबिवीमै बहुत सौ पेशिगोंफा पक पोल: गोहा जनता है । सर्व पेशिर्मोंते संतु निकले रहते है । अत: यह संघ पानोंमें घूमता है । जहाँ पर पानी किंचितूहरे रंझा। दिखाई पड़ता है पर्दों पर थे पगरुपतिथदैयिलतपै है । भहस्कारी शीशेर्मे से देब्रनेपर थे संध सुईकै शेदकेगोलेके समान दिखाई पड़ते हैं । सूदप्रन्र्शन्न यन्त्रमैं से देब्रनेपर इनमें

भूरा सी पेशियाँ दिचाई पडेगी इनमें स्तिथि। । ले पहिलेकै समान ठदृतुत्रोंकौ उत्परि। होनी है ।

पैशिर्थोंके जीवद्रव्य मबीन महीन भागौसे एक दूखरेमें जुडे रहतेहैं, तथा एरिद्रमा बहुत रोटा है । पैसो विभाग-, या संधके टुच्चे होनेपर याग-

स्पतिक रीतिसे अनेक नयी एगस्पतियों आश ६ होतौहैं। योगसम्भध डत्पाश्चर्ने दो शदृबोंकै 1

रश अथवा रैतका संयोग होकर नयी षयस्पति तैयार होती है ।

संघमैं कुछु विशिष्ट पेशियाँ रखी फामके सिये रहती हैंओर कुछ ले उत्पन्न कते हैं । यह तत्व पिरूफुरू सूक्ष्म, किन्तु किंबित् शर्म अऱकारफा होता है और उसमें पाखरे समान दो धागे हींते

हैं । कुछ रज निर्माण करनेवाली पेशियाँ होती है

डानकौश ( अ ) ५७१

हँदृझेहेहेहेईहँहैड़ेड्डेड्डेड़ेद्देट्वेंबैएँड़े 'ड़ेतेड्डेर्तहैं हैं "ड़ेच्चेहैं" है

बोर उससे उत्पादन होता । है । वानस्पतिक उत्पादन पेशी विभागसे होता है । हूँ

हसिकु पाणहैरां ( (3111०द्र०हूर्भादुरु०ट९दृ )…पूव्र ३ जानिकी वानस्पतिथोंफी विशेषता अर्थात् उनसे ८

अदृष्य र्वनस्पसि

"र्देईहैंहँबैदेदैदैड़ेहैंहँदृदेंद्देदेंहैर्वेहैंहुँहैंदेंड़ेड्डेड्डेकैहैंझेहँर्षर्वईद्देर्यदें

तैयार होती है ।

एकषेशीमयकी अगकरै ब्रासियोंमैंउदृपाव्रन करीम करीब ऊपरकै अनुसार ही होता है, लेकिन कुच जातिवृट्वेंमैं पैशिथत्के संध गोल न हो कर विखे होते थे 1 षहुपा उनमैंसंघहीं नहाँहोते । करैएकमैं योज्जासंभय उदृपादनमे के दोनों तन्न एँफ ही समान होंतेहैं। भतासौतथापुरुप तत्व अलग नहीं पहिचाने जा सकते ।

र्तनुमष वमस्पसियोंपै जीन मुख्य जातियाँ होतीहै। पहिली ज्ञाति ऊणिका ( ८1०६11४९८ ) मृन्तुओ डारापनापुरैहै । दूसरीहाँरंटेरो माफ, (1311९टद्र०।४।०द्रा3३13)फीबैकौ तरह या यहीँ के समान चनैहो तथा पतली होती है । इनमें शस्वाये' त्रहींकृटती । ऊणिकाके रुन्तुमैं पदुतसो पेशियाँ हींनीहैं । प्रत्येकषेज्ञासे एक एक हाँरेद्रुव्यका पट्ठादोताहैं । पफपेशीसे एरुब्रणा अधिक जनन उत्पश हो कर उनसे प्रयोग संभव उत्माव्रन दीताहै । इन दान पेशिपौर्मे दश्चप्रे समान धार हैं तन्तु होते हैं उनके कारण थे सेर सकते हैं। योगावैभव रीतियोंपै असमान नरुचौ' का संयोग होता है । थे समान तरुन जनन प्रेशिऔके समान' दीपक पैशीसे उत्यव्रहोसेहैं किंतु जनन पेशी फीअपपेशा अधिक होते हैं । प्राषेक टाषमैं पाखकेसमान र्दादौ तन्तु होंसैहैं। एक वन- स्पतियें ही दो साध संयोग नहीं देतो । दो भिन्न है त्पन्तुप्रौकै तादीका संयोग होता है दृथा एक जननपेशीका निर्माण देशा है । इस पैशौसे एक एफ पैशीमप वनस्पति होती ऐओरनदृ जननपेशी डापव्र काली है। श्यशनमुपैयिपौ

जिन्न प्रकार चार छोटे नंनुगौपौ जनन पेशियाँ उत्पन्न होती है उसी प्रकार धार या दो डादृगौ को धिरूकुरू छोटी समान झत्व स ८३- जान पेशी भी उत्पन्न होनी हैं ओर कुछ सा-मणद उनसे म्रूहै समान वनस्पति होती देहू। उत्पारफ पृदिपूपौकौ या तत्यरैंकौ यह अमूणात्रस्या ८९१ व्रश्यातिकौ विशेषताएँ 1

एजा दीफीरा (टाम्भनुणग्रंपृणव्र) नामक त्तन्तुमप वनस्पति पिछलों क्लस्पतिट्टीकों अपेक्षा कुछ पिंव्र होती है । श्चमे शाडाथ फूदृही हैं । इस के प्रदृपैश पेशोये बहुत केन्द्र होते हैं ल्या इसके

इन दीनोंका संयोग संधकै मध्यभागकै पीशेद्विल्ले ३ हाँरेंद्रब्ध शरीर मैंब्लतैसै गोल मैंणोंकै समान

मैं होकर उससे एक प्रकारकी जननपैशौ होती है । ३ पाइरसा संध नष्ट होजाता है । भौर्दार्जी मैं 1 कभी ३३३३३ फूदृस्म

- ३ के ' की है द्विरुस्ताएँ पड़ते है दिरैङ्कदै 'तहूँटुरैरो जहुँहुँहै