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डातिमैंयुझ, सुरासेवन इत्यादिसे इसका प्रादुर्भाव हुँ दो सकता है ५ अत्यंत भय, निरन्तर मानसिक चिन्ता, सिरमैं गहरी चोट लगना, विषम ज्वर 1 यांतीमे कौडी लग जाना इत्यादि भी इस रोगका 1 फभो-फभी कारण होताहै । वसुधा पहलेपहल रे इस रोभका प्रारम्भ रात्रिमैं ही होता है । जप ३ यह रोग भयंकर रूप धारणकरलेता है तो स्समैं दोरे ओ१ षेहोशौ दोर्वीहींहींतेदृ । व्रश्लेतो मनुष्य हाथ पैर पटक्रटा है तया अपेक ऐसे हीं त्वन्मादावरथाके से कृत्य करता हैं 1 अन्तमें वह बेहोश दो जाता है इसरोगकै दो मेद का सकते हैं, जिनका वर्णन नीचे क्रमश: दिया जाता है… हूपना-हसकें अनेक भेद होये हैं । सूचना-इसके अनेक भेद होये है है कभी-कभी हाथ, देर, मुख मुश पड़ जाता है, दृष्टिम्रम अथवा आँलोंकै सामने जुगनु चमकने लगते है-, अनेक रंग दिखाई देते हैं, चक्कर अण्ड: दम घुटने लगता है, एकाएक पसीना लूटने रूगता है या जाडा मालूम होने लगता है, बिलों असावधानी व्याप्त एँ हो जाती है । सूचना-इसके अनेक भेद होये है है कभी-कभी हाथ, देर, मुसमुक्ष पड़ जाता है, दृष्टिम्रम अथवा आँलोंकै सामने जुगनु चमकने लगते है-, अनेक रंग दिखाई देते हैं, चक्कर अण्ड: दम घुटने लगता है, एकाएक पसीना लूटने रूगता है या जाडा मालूम होने लगता है, बिलों असावधानी व्याप्त हो जाती है । पेरीशो-रसमै रोगी चाहे कोई भी कार्य करता रहे, एकाएक तबियत घबराकर वह शीश पैहोश हो जाता है, हाथ पैरमै पैटन होती है. दल पैठ जाते हैं, आँखें पथराई हुई देख पडती हैं, मुहिंसे केन तथा लार चूमा करती है, चेहरा स्यार हो जाता है, नथुने फूल ज तो है । मल मूत्र ऐसी ही अगुन ड्डावरुथामे हो जाता है। रस रोंगमे थोडी देर तक रोगी हाथ पैर पट- क्या है, और अभी-कभी तो रोगीके शरीरको इससे पडी हानि पहुँचती है । कभीकभी चोट तक लग जानी है । रस सतत ग्यर्थकै परिश्रमसे हींशमैं भानेकै पक्षातूरीगो .गड़ा शक्ति सा देख पड़ता है लधु आस्वाद-एक दम पैहींशो प्राप्त होनेके अतिरिक्त अधिकार रोंगिर्मोंकौ इस भेंदमे कुछ भी नहीं होता । बोलते ही बोलते एकदम उसकी नजर स्थिर हो जातीहै और कनीनिफस्थहूँ' विस्मृत होती हैं, रोगी कुछ न कुछ निरर्थक पड़वड़ाने क्षमता है, और बेसुध हो जाता है है उसके पआंतू अपने चारों और क्या हुआ था इसका उसे कुछ भी नान नहीं रहता । यहि रोगी भोजन करवा जो तो एकाएक थालोंमैं या कटोरौमें आनो देंग; सिया अपने लगता है ओर कुछ सेकंड तक पैसुघ रहता है । ,फिर पूर्व स्थिति प्राप्तहोते ही अनुभपसे उसे अपनी गलतियों तथा विस्मृति- का स्मरण होने लगता है । तव वहानुझे व्रव्र जरा चक्कर आ रहा है अथवा मेरा सिर दर्द कर रहा है इसलिये मैं जरा लेट जाता है यह कहकर दूसरी ओर चला जाता है । अथवा पहले जो कुछ करता हो नहीं फिर करना आरंभ कर देदा है । कभी-कभी एग रोगियोंको केवल चस्का आना या एफदों दोंरेंका आकर हाथ देर हिलाना अथवा मूर्चाधरुथा. प्राप्त होना आहि कष्टदायक लक्षण होने लगते हैं. इनमेसे कुछ क्ति और लुहुंदहैं महापत्मारकौ सूचना चिहोंकै समान ही हा अम्बापत्मार स्थिति…त्रिशेपत: उक्त भेड़र्मे जिस तरहकै हाथ पैरोकै पटफनेका वर्णन किया गया है वह खतम होने पर यह स्थिति प्राप्त होती है इस स्थितिसे मानसिक अवस्थामे विलक्षण फर्क पड़ जाता हैं । कुछ दिन तक उसे कूमी आती है अथवा वह पागल सा हो जाता है । कभी कभी अज्ञान-वश वह कुछ ऐसा फर्म कर बैठता हैं जिनका उसे बादर्में कोई भी स्मरण नहीं रदृता वह इधर उधर दौड़ता हैं तथा जो कोई उसे मिले उसे हीं चपर्दे लगाना शुरु करता है; खी रोगीटो अपने बचे तककौ भी मार डालती है; इस सरद सै रोगो चौर्वकर्म भी कस्नेर्मे नहीं हिचकते एक समय एक न्यायाधीराने ऐसी सियतिमें भरी दुई अदालत्तमें एक कौनेमैं बैठ कर पेशाब किया या 1 इस मानसिक स्थितिका ज्ञान वैध, डामर तथा धकीन्होंको अवश्य ही होना चाहिये । लोग यह नहीं जानते कि उस मनुम्यकौ रोगकै कारण ही ऐली मानसिक स्थिति दीती है 1 इस कारण संभव है कि उस पर जाणा कर मारपीट करने का अथवा खून कानेका अभियोग साथिन हो जाप । कभी इस रोगकै साथ पागलपन, अति' राग, म्नम और भास होता है 1 कभी सड़कें, लड़कियाँ तथा खिर्योंको पहले इस प्रकारका अपस्मार होकर पाधात् उसका उम्पादयायुमे रूपान्तर हो जला है । कभी कभी ये दोनों भेद एक दूसरेंमें मिश्र होते हैं; याने रोगीकों प्रथभ लघु अपस्मार होकर फिर पडे पनमैं मममममार होता है 1 अभी केवल सूचबावरुया ही रोगीयों होनी है, हुंरन्तु ऐसा प्राय: फमदो होता है इसके रोगी को अवस्था क्रमश: यदलतौ रहती है । पहले पहख तो वीरे महीनों तक भी नहीं आते, किन्तु ज्यों क्यों रोग पढ़ता जाता है, इसका दौरा भी जलं। जल्दी आने लगताहै फमीफमी तो प्रतिदिन अथवा दिलमें कई बार