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सेनापतिखाससाँ को नहरवाश भेटा; जहाँसे वह अतुलित संपत्ति तथा सहसौ कैदी लाया सुल्तान अलाउद्दीनने सत् १३८० ई० मै गुजरात जीतने पर, अपने सरदार उतूथसाँ को सोमनाथ का नाश क्यों को भेटा । बाँने अलाउद्दीन की आज्ञानुसार सोमनाथका नाश किया ओर उसकी सबसे वडी मूर्ति अलाउहींनकै पास भेडा दिया णाम्भराना-पंचासरका राजा जयशिखर ल्लारणके सोलंकी राजासे युद्ध करते हुये मारा- डाथा' क्व रुपसुन्दरो प्राणरक्षणार्य अपने भाईकै साथ बंगलमें भाग गई । इसके पुत्र यनराब्रने अनेक वीरता-सूचक कार्य किये ओर चंपानेर तथा अन्तिलधादृ नामक दो नगर बसाया अन्हिलवाड़ का नामकरण उस कर्मचारीकै ३ एँफ दूसरी न्न्तक्या हैं में के स० १८७५हुँ० की पुस्तफमै दी दुई है । यनराजका पृड्डाज वेणीराजाका पिता धनराज था । धनराज दीव गड़पर राज्य फस्ता था । उसके पुत्र वेणीराशाने सनुइकौ शपथ लेकर एक व्यापारीकों धोखा दिया था. इसकैफलसजप सयुद्रने डीवगड़कों वहा दिया । राजस्वी गर्भवती खो नहाते भाग गई। बांदरमें रानीने एक पुत्र प्रसव किया जिसका धनराज नाम पड़ा । द्दसको अन्दिख गड़ेरियाने पहनने गडा मुआ धन दिखसाण जिससे उसीके नामपर धनराजने 'अन्दिलघाढ़’ ५ गामक नगर मखाया 1 आईने अफवरीमैंके गुरु तथा प्राय: प्रथत्नसे पंचासरर्में पारस- नाथ का ममिदर दना; जिसकी मूसिंसे यह प्रगट होता है कि राजाने श्रस्वकोंफी आश्रय दिया था किन्तु पदृनकौ दो सूतियत्-उमामदेश्वर तथा गणेशजीको देखनेसे यह ज्ञात होता है कि उसकी क्या त्राहणों पर भी थी । इन मूर्तियोंपर मृगराज तथा नगरकै स्थापनाका वर्ष सं० ७०२ ई० खुदा पुआ है । फीध्दर्स कहता है कि यहाँकै प्राचीन राजा उदार ये 1 उन्होंने कभी किसी मत बिशेपकें प्रचा- रकौफीहानि नहीं की । यहाँ शेषतधा जैन प्रचारक शान्ति पूर्वक अपने अपने मतका प्रचार करते थे सोलंकी वंश…-चाघड़ा वंशके पआत्सोलंकिर्यो ३ ने यहाँ अपनीराजसत्ता रथापित्त की । प्रथम द्वा सोलंकी राजा मूलराज था । ५स वोडका द्वितीय राजा चामुण्ड था । इसीके राजकारूमें गजनीके भहभूदने अन्दिलवाड़ पर धावा किया । चानुएड 1 को पराजित कर वह सीधा सोमनाथ पर चढ दौडा, जहाँवस्तभसेग तथा भीमदेधनामकै 'दो राजपुनोंने उसका सामना किया, पर ये भी परा- जित हुए । सोभनाथसे लोटकर मदृमूड़ने क्योंकै सिद्भराजकै बारेमें अनेक किंत्रदन्तियाँ प्रच- श्ले ' सित हैं । इसके पश्चातूकूमास्यासने राज्यारोहण रू 1 किया 1 यह जैन आचार्य हैभचन्द्रका शिष्य था ५ यह कहा जाता है कि इसने पुत्मारविदृश्य नामक ३ पारसनाथका मन्दिर वनशथा 1 एक वारस्वणार्मे 6श्महादेवजीने अन्दिलबाड़वै मानेका बिचार ५ हूँ प्रगट किया, इसलिये उसने एक मन्दिर यहाँ भी बनवाया 1 इसीकेपुवलवणप्रसादके वंशज पवेल वंशी गामसे गद्दीपर बैठे भीमदेव द्वितोयके सश्यमै सोलंकी वंशका अस्त मुआ । इसने ९१९४ ई० में फुतुयुदौनकौ पराजित कर उसे अजमेरर्में रीफ स्था । किंतु आगे चलकर कुनुबुहीनने नगरुकै समीप ही उसके सेनापति जीवनराथकीयाघेलर्वश-मुसलप्रानोंकों शीघ्नहीं अभिल- वांड़ छोड़ना पडा, किन्तु इसकी श्वक्तिका दिन प्रति हिम हास होता गया । गोल राबाबौकी स्वतन्त्रता ( १२१४-१३०३ ) लगभग एक श्र्वत्यौ