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साथहीं साथ फनां डीपी भी. पोत्हुँगौजने स्पेन हैं का देडाला था । पहलेतो यहाँकै निधासिर्योका ३ स्पेन वासोंते युद्ध दुआ फिन्तु इसोशर्व पर शीव्र ही सन्धि हो गई कि तद्देशीय निवासियोंमैं से परैघकै द्वारा टापूका सक्षालन होता रहे १९र्वी शताषत्रोंकै उत्तरार्दमैं यहाँ रुपेनकौ सत्ता फिरसे पूर्व रूपसे स्थापित हो गई अदिल वाहु-गुजरात प्रान्तपै अक्ति- बाड़ एक प्राचीन राज्य है, जिसका नामकरण उसको राज़धानीके नामपर पुआ था । प्राचीन अन्दिलवाड़, आधुनिक वडीदाकै पट्टूण या म्रन्दिलवाड़ पट्टूण शहरके किंचित् वायव्य दिशा में स्थित था । रस राज्यका संस्थापक वनराज नामक पुरुष था । कुमार पाल चणिमें अचिल- वाड़का वर्णन पाया जाताहै नगरमे असंख्य न्यायालयये, जिनका संचालन सुचारु तथा सुव्यवस्थित रूपसे होता था साद्रुखोंभन्दिर तथा पाठशालायें यों । वृशोंफी सधन छायामें वेद विषयक वाद निनाद होता था नगरर्में प्रतिदिन सहसो रुपयेकी आय थी उक्त पुस्तकमें उपर्युक्त बिषर्थोंके षर्णनके अतिरिक्त कितनी ही दूसरी पार्तोंका वर्णन अत्यन्त सुंदर तथा आकर्षक भाँतिसे हुआ हैं । (फीर्ल्स) इद्रोस नामक विद्वान ने ९१५३ ई० में अणि- लचाड़का वर्णन इस प्रकार किया है, "नहर- बाल ( अन्दिलवाड़का मुसलमानो ९नाभ ) मे क्लहार नाम का एक रात्रा राम करता है । वह पुद्धका उपासक है । उसकामुकुट सोने काहँ वह मूख्यबांनं वस धारण करता है । उसमे पास हायिर्योंकाआखेट की निकलता है । मंवी तथा सेनापति केवल युद्धकै अवसर:: ही उसके साथ रहते है । अनेक मुसलमान व्यापारी भी नगरमे दिख- खाई पड़ते हे । राजा तथा उसके कर्मचारी उनका ससम्मान आश्रय प्रदान करते हैं । हिंदू खभापक्ष: न्यायप्रिय होते हैं । येशपनी राजभक्ति तथा सत्यप्रियत्यके (रिये प्रसिद्ध है । वे समृद्धि शाली है । उनकी प्रामाणिकता का यह एक उदृकृदृ उदाहरण है फि यदि महाजन अपन ऋणीत ऋण वसूल करने कोंटागले. सोऋणीविना ऋणचुकाये या महाजन को संतुष्ट किये अपने स्यानसे न हटेगा । लोग अज. शाक, या खर्य मरे मुये जानवरों का मांस बाते हैं । वे अहिंसक है 1 वे गाय ओर तैलकों पूज्य दृष्टिसे देखते हैं प्रवीन अखी ग्रंथकारोंने मो अन्हिलत्राड़कै बारेमें लिसा हैं । वे इसको मित्र भिदृन नामी आभहल. फान्हल, कान्दस, काभुट्टूख, मामूल, नंस्तवार, नहरधाल-द्वाण संपोषित काते हैं ५ इस्तस्वी…( सन् १११ ) पहला अरबी विज्ञानं है मिलने इसकों "आठहख' काके सामो- धित दिया हैं ओर इसके बारेमें लिसा हैं ! इसके पहिले किसी भी अरवी कूगेलपेसा का ध्यान रस ओरएक "जामा" है । अलबरूनीका भी ध्यान इस ओर गया था । गृहीत इसकों मान्दल कहकर पुकारता हैं, ओर लिखता है कि, "यहस्ति गुजरात ) तथा तिनके मीच स्थित हैंदृ-त्तथा धोड़ेड्डूओरड्डेऊंठ रखने बातों का निवास स्थान है १ क्यों शटान्दोके रतिहासकारोंने, जो महमूद के राज्यकालमें हुये ये, करै नार अन्दिखवाड़ का उल्लेख क्रियाएँ। फरिश्ता लिखताहै कि अन्दिलवांड़की बिषयकै पश्चात् जव मदृमूदृने सोमनाथ का नाश किया तो उसका विचार था कि वह अन्दिलवाद्भ को अपनी राजधानी मनाये क्योंकि यहाँपर सोने की खाने थी ओर सिंहल- धीषकी भांति यह भी अपने रानोंके लिये प्रसिद्ध फष्टिताके वाद न्रब्दोंन मुहम्मद डफी (रुष्ट १२७७ ई० ) ने अन्तिक्षधाड़ का उल्लेख किया है उसने अन्दिलधाड़कै जगराता के समयका वर्णन क्रिया है । उक्त इतिहातमे यह भी उहिखित है फि द्वितीय मूलराजने संन् ९१ ८ ८ ई० में स्यार दृगेरीकौ पराजित किया । ताबुत मआसिरने सिया है कि इसी पराजय का बदला कुतुयुदीन पैपफने सन् ९२९७ ई८ में लिया । सुलतान गलिरुदीन कयाच ( सन् १२ज्य६६ रै८ ) तो दैत्रखझे अपने-