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ज्ञानकोश

रहा था, उस समय वह यहाँ तीन दिन तक अपना डेरा जमाये रहा।

अका (पहाडियाँ) पूर्व बंगाल तथा आसाम। दरंगी जिलेके उत्तरकी शोर हिमालय पर्वतका एक भाग। इस भागमें जंगल बहुत हें। यहाँ जंगली लोगोंकी बस्ती होनेके कारण इस भागका अधीकतर पता नहीं लगा हें। अका जातिके दो भाग हैं। (१) हजारी खोआ (२) कपास चोर। आसाम के राजाओंके शासनकाल में लोग प्रजाको बहुत कष्ट पहुँचाते थे। अब भी वे प्राजाको थॉडा बहुत कष्ट पहुँचाते हैं। ये लोग तिबेटोवही शाखाओं हैं और वीर तथा स्वतंत्र विचारके हैं। उनके रेहनेको स्थान आति सुरन्दित होनेके कारण अंग्रेज लोग उनके ऊपर चढाई नहीं करते।

अका जाति-इस जातिके लोग तेजबुरके उत्तर की ऑरके पहाडी प्रदेशों में रहते है। उनकी एक छोटी, पर स्वतंत्र जाति है। कर्नल डाल्टनका मत है, कि इन लोगोंका उफ्ला-मीरिस तथा अबोरों से बहुत निकटका सम्बह्ध होगा। परन्तु अका जातिके लिग उनकी अपेत्दा देखनेमें बिलकुल भिन्न मूलम पडते है। (इ० ग० मर्दुँमशुमारी)

अका काग्वा ददिये अमेरिकाके चिली देश एक प्रान्त है। यह प्रान्त बहुत पहाडी है। यहाँकी हवा बहुत ही ऊण्ण तथा सूखी है। यहाँ पर अंगूर बहुत अच्छे होते है। इसी नामका ज्वालामुखी पर्वत तथा नदी भी यहाँ है। इस प्रान्तकी जनसंख्या लगभग बाराह हजार है।
  अकाडीया- बम्बई इलाके के मध्य काठियावाड के बाब्र थाने का एक स्वतंत्र कर देने वाला राज्य। यह बाब्र के उत्तरपूर्व लगभग २० मील दूर तथा भाडली से उत्तर की और ४ मील केरी नदी के उत्तर तीर पर बसा है। यहाँ के गरासिया जमींदार बावड राजपूत वंशके हैं और इस द्वीप-समूह में यही एक उनका स्वतंत्र स्थान है।(ई०   ग० ५; ब०, ग० ८,३५६)।
   अकाडी-उत्तर अमेरिका में ४० से ४६ अक्षांश में स्थित एक फ्रांन्सीसी बस्तीक नाम। यह बस्ती सन १८०३ ई० में बसाई गायी थी। इसी को नोवास्काशिया कहते हैं। 
   अकापुल को --अकापुल को शहर मेकिस को देशके गयुटो राज्य में पॅसिफिक महासागर के किनारे पर स्थित हैं। यह एक अधँ चंद्राकार उपस्तागर पर स्थित हैं। इस उप-सागर के किनारे यह सबसे अच्छा बन्दरगाह हैं। इसके आसपास का सृष्टि-सौन्दर्य प्रेक्षणीय हैं। समुद्र की ठंढ़ी हवा देश में लाने के लिये इसके निफटबती पहाडों में एक सुरंग खोदी गयी है।
   अकालगढ़--पआब। गुजरानवाला जिला। तहसील बजीराबाद। नार्थ-वंस्टर्न रेलवे के बजीराबाद-लायलपुर लाइन पर करीब पाँच हज़ार जनसंख्या का एक गाँव। यह उत्तर अज्ञां० ३२१६ तथा पूर्व देशा० ७३५० पर स्थित हैं। सन १८६७ ई० से यहाँ पर म्युनिसिपैलिटी है। उसकी आमदनी लगभग छः सात हज़ार है। व्यापार की ध्ष्टि से गाँव प्रसिद्ध नही है।सिख-शासन के अन्त में सावनमल तथा उसका पुत्र मूलगज मुलतान के सूबेदार थे। उनके घराने के लोग अब भी यहाँ रहते हैं।(इ० ग० ५)।
  अकालारोन्शिआ--इस स्ती के सबंध में रोमन लोगों में एक दंत-कथा प्रचलित है। यह कास्ट्युलस नामक गडेरियेका स्त्री थी। रोम शहर के संस्थापक रोम्युलस तथा रोमस टाइबर नदी में बह जा रहे थे; उस समय इस गडेरिये ने इन दोनों को बाहर निकालकर इनकी रक्षा की थी। उसने इन लडकों के साथ इनका पालन-पोषण किया। यह स्त्री बदसूरत थी। इसे लोग 'भेडिये की मादा' के नाम से पुकारते थे। उसने रोम्युलस तथा रोमसका पालन-पोषण किया; इसी कारण यह दंत-कथा प्रासिद्ध है कि दोनों लडकों क संवर्धन'भेडिये की मादा' ने किया। दुसरी एक दंत-कथा के अनुसार यह एक सुन्दर लडकी का नाम है। हर्क्युलीस ने जंग मे जीतकर इस लडकी को प्राप्त किया था। इस लडकी ने अपनी सारी संप्त्ती रोमनों को दे डाली। इस कारण वे लोग इसके नाम से उत्त्सव मनाने लने। कुछ लोगोंका मत है कि यह भूदेवी की माता थी।
   अकाली--यह पंथ मूल सिक्ख पंथ से भिन्न हैं। नागा अथवा गासाइयों के सहश अकाली युद्ध-प्रिय होते हैं। कहते है कि सिक्खो के दसवं तथा अंतिम गुरु गुरुगाविंद ने (सन १६७५-१७०८ ई०) इस पंथ की स्थापना की। कोई-कोई "अकाल पुरुष" (अनंत के उपासक) नाम  से 'अकाली'(अमर) संज्ञा को उत्पत्ति लगाते हैं। दुसरे 'अकाली' के अमर देव अर्थ से अकालीका अर्थ ईश्वरोपासक समझते हैं। 'सत औ अकाल' अकालियों की रणगजना का शब्द हैं। अकाली नीली पोशाक पहनते हैं।(कृष्ण के बडे भाई बलराम नीली पोशाक पहनते थे; इसलिये उसे