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अनंतत्वः अनन्त ज्ञानकोश (अ)२१५ बहुत कठिन तथा व यह ताजिक नील कराठीके नामसे प्रसि राम बडा विद्वान् तथा ज्योतिषी था। इनके पुत्रका अनंतत्व:-शब्दार्थः-अनंतत्वके संबंधका नाम नीलकण्ठ था। नीलकण्ठने 'तोडरानन्द' प्रश्न बहुत कठिन तथा वादग्रस्त है । अनंतत्व ताजिकपर भी ग्रन्थ लिखे हैं। यह ताजिक नील- ( Infinity ) शब्दका दो अर्थोंमें प्रयोग किया कराठीके नामसे प्रसिद्ध है। नीलकण्ठका पुत्र जाता है। इसका पहला अर्थ "अंतरहितस्थिति" गोविन्द हुआ। उसका जहाँगीर बादशाहके दरबार है, और दूसरा अर्थ संपूर्णता अथवा अव्यंगता में अच्छा मानथा। मुहुर्तचिन्तामणीपर पीयूषधारा ( Perfectness) है। पहले अर्थका उदाहरण नामक टीका उसीको लिखी हुई है। ताजिक नील- मूलांकोकी मालिका है। यदि हम १, २, ३....... कण्ठीकी टीकाका श्रेय भी इसे ही दिया जाता है। इस प्रकार मूलांक क्रमसे लिखते जाँय तो इस अनंतकी वंशावली क्रमका अन्त नहीं कह सकते। हम यदि कितनी चिन्तामणी-(गाय॑गोत्र ) भी संख्या बढ़ावें तथापि उसमें एक और बढ़ सकती है। इसलिये यह संख्याक्रम अनंत है अनन्त (पत्नियद्या) अर्थात् यह खतमही नहीं होता । दूसरी ओर वर्तुलका जो परिध होता है उसको अनंत अर्थात् नीलकण्ठ (पत्निचद्रिका) पूर्ण ( Complete ) कहा जा सकता है। अनंत शब्दके ये अर्थ केवल समानही नहीं है वरन् कुछ शके १५०६ शके १५१२-२२ अंशोमें वे परस्पर विरोधी भी हैं, यह बात आगेके गोविन्द (पत्निगोमती) उदाहरणसे सिद्ध होजायगी। १,३,.,..."यह संख्या क्रम अनंत अर्थात् अन्तरहित है इसमें से माधव प्रत्येक संख्या 1 के सदृश स्वरूपकी है। (. शं० बा० दीक्षित-भारतीय ज्योतिष शास्त्र) (2) जयराम स्वामी बडगॉवकरके दो शिष्य | और 'न' का मूल्य प्रत्येक समय दुगना बढ़ता है। थे। एक गोपाल थे, दूसरेका नाम अनन्त । गोपाल इस जगह मूल 'न' को मूल्य कितनाभी अधिक की मृत्यु शक सं०१६१२ में हुई थी। कदाचित् मान लिया जाय तबभी उसका दूना होना सर्वदा समर्थके शिष्य दूसरे अनन्तभट्ट थे। वे सतारा शक्य है। परन्तु इस उदाहरणमें 'न' का मूल्य प्रान्तमें मेथवड़के तीसरे खामी रङ्गनाथके कोई न संख्या का शिष्य रहे होगे। (सं १५८०-१६४५) इनके लिखे हुए ग्रन्थोंमें प्रधान ब्रह्मस्तुति, माधवगुण, द्रौपदी मूल्य की अपेक्षा बहुतही कम होगा। इस स्वयंबर, रुक्मिणी-स्वयंबर, गरूड़गर्व परिहार, लिये यह कहा जा सकता है कि अन्तिम संख्यारुद्रयामल इत्यादि हैं (सं० क० का० सू) क्रमका मूल्य दो संख्याके पास पास होता जाता (५) समर्थ के शिष्य जिनका ऊपर वर्णन श्रा है। यही बात दूसरे शब्दोंमें इस प्रकार कही जा चुका है। इनके रचित प्रथः-रामचरित्र बभ्र - सकती है कि जब 'न' का मूल्य अनंत होता है बाहनाख्यान, सुधन्वाख्यान, सीता स्वयंबर, गोपी तब ऊपरके संख्याका मूल्य दो रहता है। इस गीत, रामदास स्तुति, सुलोचना गहिंबर, लवकुशा लिये यदि यह संख्याक्रम अनंत तक बढ़ाया जाय ख्यान, श्रियाल चरित्र, सिंह ध्वजाण्यान, गरुड़ तो वह संपूर्णता तक पहुँचता है। यही अर्थ - गर्व-पहिहार, गजगौरीव्रत, अहिल्योद्धार, अहि- प्रसिद्ध वैज्ञानिक जेनोंके दूसरे उदाहरणसे स्पष्ट महि श्राख्यान (सं० क० का० सु०) हो जाता है। मान लिया जाय कि कोई एक पदार्थ (६) रङ्गनाथके शिष्य । इनका ग्रन्थ 'पद' है। (अ-ड-क ब) असेब की ओर जा रहा है तो (सं० क० का० सु०) प्रथम वह अ-क का आधा अंतर समाप्त करेगा (७) एक प्रसिद्ध लेखक । ग्रन्थ-गरुडाख्यान, और इसलिये अ-क का आधा अन्तर जो अ-ड है निर्वाणषटक, पालना, मूपाली, लवकुशाख्यान, | उसे वह पदार्थ उससे पहले समाप्त करेगा इस चक्रव्यूह (सं० क० का सु०) तरह अनन्त समयकी कल्पनाकी जा सकती है। (E) मंडनके पुत्र। ग्रन्थ-काम समूह अर्थात् इस उदाहरणके संबंधमें यह कहा जा (सं १४५० ई०) सकता है कि इस बार इतने अन्तरमें प्रवास (8) अनन्त अथवा अन्तू नामक एक सुनार । करनेमें अनंत संख्या क्रम पूर्ण होता है। ऐसे उदाग्रन्थ-कोल्हाटखेल (सं० क० का० सू०) हरणोंमें अन्त-रहित तथा संपूर्णता ये दोनोंही