यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

को छोड़कर और सब मंत्र इत्यादि सबको विदित होंगे ही तथा उनका अर्थ भी सबको स्पष्ट होगा ।

  वैतान सूत्र का उत्तम विवरण तथा अनुवाद गावे साहब के लिखे हुए वैतान सूत्र नामक ग्रंथ मे देख पड़ता है।
अंतरचना वैतान सूत्र मे दिया हुआ कुल भाग अर्थवेद मे लिखे हुए कुछ भाग से श्ब्दश: मिलता जुलता है। वैतान सूत्र मे दिया हुआ जो भाग अर्थवेद के जिस हिस्से से मिलता जुलता है वह नीचे लिखा जाता है
   वैतान सूत्र के १,१७,१०,५,३७,२३,३,१७,८,४,२८,३२-इत्यादि सूत्र अनुक्रम से अथर्थ वेद के १७,६७,१-४६,१२,१,२३,२५,२८,३,८,७,२,४८,१.६१,२.५३,४.४४,१.११,३.३,१०.७,३.१७,२ सूत्रो से मिलते जुलते है। वैतान सूत्र का वह भाग जो अर्थवेद मे ही दृष्टिगोचर होता है यदि कौशिक मे भी आए हुए उसी भाग को छोड़ दिया जाए तो वह बहुत ही थोड़ा रेह जाएगा ।
वैतान सूत्र मे कहा है की ब्राह्मण ब्रह्म वेद विद होना चाहिए। ब्र्म्वेद कौशिक मे नही दिखता, परंतु इसके बदले कौशिक या वैतान सूत्र के एक स्थान पर भृग्वागिरो विद नामक एक पुराना शब्द दिखाई देता है अथर्वीगिरो विर्द ब्रह्मराम । गोपथ ब्रहमराम तथा परिशीस्ट मे भी भृग्यगिरोविट शब्द दिखाई देता है। ब्रह्मवेद विट शब्द वर्तमान समय का जान पड़ता है। अर्थवेद तथा उसके पुरोहितो का आश्त्त्व कही कही वैतान मे दर्शाया गया है। ब्रामण,पुरोहित तथा उसके वेद की अष्ठेता दिखाने के लिए अथर्व परिशिस्टो मे अनेक प्रयत्न किए गए है। यहाँ तक कि दूसरों के लिए अप्श्ब्दो कि योजना करने तक मे नहीं चुके है।
    इस प्रकांरका प्रयत्न केवल अथर्व साहिल में भी नहीं किया गया है-, उसके महाभाष्यमैं- भी अथर्बवैइ कों बेदों मै प्रथम स्थान दिया गया है पुरोहितका अथर्षाक्तिसके समान मालूम होना याज्यस्साने ( १. ३१२ ) कहा है अथर्वऋपि गुमातु’ को तपैणकै समय ऋग्वेद गृहय काम मे प्रमुख स्थान दिया गया है । ( शामा ४4५३) अथर्वण साहित्पकै बैसान सूक्तकै अतिरिक्त ओर कहीं भी न मिलने वाले तैनान तूक्त में कोई अधिक विषय नहीं है; केवल वै० सू० २-१० क्या ४३-२५ में अभिचार सतन्त्र रीतिसे खायागण है 1 सौजफयशकें विषयका दान कहीं ओर नहीं दिखाई देता। शाम दफका वर्णन बै० सूझोंजिदृ

टिणणी मे भाया हैं उस टिप्पणीमैं पिर पुरे संरकार से अथर्यणसास्थि मे एक ओर संस्कार की बुद्धि दुई है कौशिक सुत्र तथा गोपथ ग्राह्मणमैं जित त्तरह पैप्पलाद शाखा के सूक्त लिए गए हैं वैसे हाँ मैं तान तूक्त मैं भी सरांध रूपसे पैप्पलाद के ३ कुड्स सूक्त लिए गए हैं ( पैप्पलाद शामा १०. १७८ १?५ १८ ३४१ १)पैतान तथा कौशिक क्लीका परस्पर सायन्ध अनेक प्रकार का है 1 बैतान सूत्रकै मुख्य अध्यायआठ हैंरू परन्तु इन मे प्राथथित सृत्रोंकौ जोड़कर' पैमान सूत्रकै कुल १४ अध्याय फिर ग"- हैं कौशिक सूत्रकै १४ अध्याय हैं इस कारण बैटान कै भी १४ ही होने चाहिये । इस हेतु वैटानकै १४ अध्याय षनाप गए हैं ! दोनों सूमों मैँ जो साध्यता है उसके कुछ उदाहरण आगे दिए हैं-८( १ ) दोंनों सूत्रोंमैं अध्यायके प्रारम्भकै अनेक रुथानों मे एक वनुत ही खम्बा मंत्र दिखाई देता है । ( २ ) अयस स्वरुपमै बिगपैं श्यापृका अनेक पवन दुआ करता है ऐसै शादोंकौ द्विचौ माँ के डाकी योजना की गई हैं । बैतान तूब्र ११3४ तथा कौ० मूत्र ८८११ 1 ( ३ ) शेनों सूत्रोंर्वे प्रसंग चि शेष मे त्रासण" का उल्लेख प्राहाणोंक्तम या इति बाहाणम् , इस बाक्यसे फरसे हैं । ( बै८ सू० ७,२५ तथा पौध सू० ६ . २२; ८०, २ ) 1 ( ५ भन्कोक्त शब्द दोनों सूत्रोंमैं अनेक यार दिखाई देता है । ( बै० मू० १, १४; कौशिक सूत्र २१,११ ) । १ १ ) "सरुपवदृसा' शब्द कौशिक तथा बैगृमू० मैं दिखाई देता हैं ( ६ ) थानंयुन्क शाद कौशिक तथा वैतान सूप्रमें एफ ही रार दिखाई देता है परन्तु