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अएणीगिरी ज्ञानकोष (अ)१२८ कारण मराठोंके हाथसे निकलने लगा। परन्तु मिला लिया। हुबली तथा धारवाड़ के समान यह औरंगज़ेवके अत्याचारोंके कारण नवयुवकों का गाँव पहले कपड़े की तिजारतके लिये प्रसिद्ध था। रक्त खौलने लगा था और उनमें देशप्रेम और धर्म । (धारवाड़ गजेटियर-इम्पीरियल गजेटियर) रक्षाके अंकुर जमने लगे थे। वे पर-धर्मानुयायियो अतर-(इत्र अथवा सुगन्धित पदर्थ) जिस को घृणा की दृष्टिसे देखने लगे और उनमें पूर्ण- भाँति मनुष्य भिन्न भिन्न इन्द्रियों द्वारा शब्द, स्पर्श जागृति हो चुकी थी। मराठों का गौरव रूप, रस का अनुभव करके प्रसन्न होता है उसी जीवित रखनेके लिये आगे के २५ वर्ष तक निर- भाँति घ्राणेन्द्रिय-प्रिय इत्र अथवा अन्य सुगधित न्तर कठिन परिश्रम करना पड़ा। पदार्थ का भी उपयोग मनुष्यजातिके इतिहासमें अपपीगिरी-यह बंबईके इलाकेमें धारवाड़ी | बहुत प्राचीन है। पुष्प, काष्ठ,पत्ती, कस्तूरीसे अतर जिले में है। धारवाड़-गदग मार्गपर नवलगुंदके अर्क तेल इत्यादि अनेक सुगन्धित पदार्थ तय्यार दक्षिण पूर्वमें लगभग १०मीलपर है । उत्तर अक्षांश होते हैं। सुगन्धिसे मनुष्य का चित्त प्रसन्न तथा १५.२२ तथा पूर्व देशान्तर ७५२६ पर स्थित आल्हादित रहता है। प्राचीन कालके सभ्य राज्यों सात हजार जनसंख्याका यह एक गाँव है। तथी देशों में इसका उपयोगबहुत होता था। मिश्र यहां अमृतेश्वरकाएक मंदिर है। कहते हैं कि इसे | अरब,असीरिया,इरान, इटली, यूनान श्रादि देशोंमें जखना चार्यने बसाया था। मंदिर की दीवालोपर इसकी प्रथा बहुत प्रचलित थी । इसी कारण यह पौराणिक चित्र खुदे हुए हैं। मंदिरमें ११५७ से | कला बहुत पूर्व कालही में पूर्णत्वको प्राप्त हो चुकी १२०० ई के बीचके कालके ६ शिला लेख मिले हैं। है। भारतवर्ष भी इस कलामें अत्यन्त प्रवीण था। दूसरे मंदिरोंमें भी शिला-लेख मिलते हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है कि यहां पुष्प इत्यादि ११६१ ई में कलचुरीके राजाविजलदेवने पश्चिमी बहुत अधिक उत्पन्न होते हैं। अतर अथवा सुगन्धित चालुक्योंको पराजित करके अराणीगिरीको अपनी पदार्थ केवल शौकीन अथवा विलासी पुरूष ही राजधानी बनाया । । विजलके पुत्र सोमेश्वर व्यवहारमें लाते हो यह बात नहीं है। यह धार्मिक (१९६७-११७५ ई०) के समयके शिलालेख मिले कृत्यों तथा देवपूजन इत्यादिमें काममें लाया जाता है। उनसे पता लगता है कि ११७५ ई० तक है। देव-प्रतिमाओं अथवा समाधियों इत्यादि पर यह राजधानी थी। ११८४ ई० में पश्चिम चालुक्यों फूल चढ़ाने की, तथा सुगन्धित तेल मर्दन कर के राजा सोमेश्वर चतुर्थने कल्याणके जैन और नान करातेकी शाबदीपाचीन है। मिटेगमें लिंगायतोके झगड़ेसे लाभ उठाकर चालुक्य राज्य मृतकके शवमें इत्र पोतनेकी प्रथा थी। यूनान फिरसे स्थापित करने का प्रयत्न किया था। एक और रोममें तो इतना अधिक प्रचार बढ़ गया शिलालेखसे पता चलता है कि ११८६ ईमें देव था कि इसके पीछे बहुत धन नष्ट होने लगा था। गिरीके तीसरे राजा यादवभिल्लम ( सन् १९८७ इसी कारण समय समय पर इसके विरूद्ध नियम १९६१ ) मांडलिक महामंडलेश्वर बाचिराजकी बनाये जाते थे। इसी भाँति चन्दन, ऊद, अबीर राजधानी अरिणगिरी थी। एक शिला-लेखसे पता इत्यादि सुगन्धियोंकी धूनी देकर गृह शुद्ध करने चलता है कि बाचिराजाके बाद शीघ्रही वीर वल्लाला नामक होयंसल राजा (सन् १९६२ से १२११ ई० उपरोक्त पदार्थोंके अतिरिक्त रासायनिक तक) की भी यही राजधानी थी। पदार्थों के मेलसे भी अतर बनाया जाता हैं। उसे फ्लिीटकानाडी राजघरानेपर ग्रंथ") रासायनिक सुगन्ध कह सकते है। १८००ई० में जब प्रसिद्ध धोड्या बाघ डंबलसे इत्र तथा अर्क बनाने की रीतियां भिन्न भिन्न भागा था उस समय वह अरिणगिरीमे ठहराथा। हैं। सबका विस्तार देना तो इस छोटेसे लेखमें अरिणगिरी.धारवाड़तथाहुबलीमें अक्तूबर १८०० असम्भव है। जबसे जर्मनी इत्यादि विदेशोसे अर्क ई० में वेलिज़लीने खेमे तयार करवाये । (Essence सत) आने लगे हैं भारतवर्ष में इत्रका ( सप्लीमेंटरी डिस्पैचेस-भाग २) ब्रिटिश शासनके कारबार बहुत ठण्डा पड़ गया है। ये बहुत सस्ते श्रारंभ होनेके समय अरिणगिरी निपाणी राज्यकी पड़ते हैं और इनके मेलसे सुगन्धित तेल इत्यादि जागीरमें शामिल था। १८२७ ई० में यहाँ ४५० बड़ी सुगमतासेत य्यार हो जाते हैं। अब तो भारतसे घर, १४ दुकाने तथा कुछ कूए थे। १-३६ ई० में इस सम्बन्ध का कच्चा माल भी बाहर भेजा जाता कोईवारिसन रह जानेके कारण कानूनके अनुसार है जो इत्र और अर्कके रूपमे आकर लाखों रूपये ब्रिटिश सरकार ने इस जांगीर को अपने राज्यों का बिक जाता है। १६१५, १६१५ ई० में यहाँ