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में खिट जरलैंडने लौटते समय "विग" दल की सत्ता समाप्त हो चुकी थी। इस कारण इसे नौकरी से हाथ धोना पडा। अब उसकी आर्थिक अवस्था बहुत खराब थी, योरपमें रहकर इसने "केटो" और पदक के विय का संवाद और इटली के कुछ भाग पार विचार लेख लिखे। विनोदपूर्ण तथा ओजस्विनी भाषा में ये लेख लिखे हुए हैं, पर इनमें चिकित्सा बुद्धि तथा पुरातन वस्तू नहीं देख पडता। १७०४ ई० से १७१० तक इसने सरकारी नौकरी की। इसकी शक्ति का परिचय जनता को इसके ललेखों से मालूं हुआ। इस कारण यह सार्वजनिक कार्य के योग्य सभा जाने लगा। राज दरवार में और बडे बडे लोगो में इसका सम्मान हुआ करता था। १७८४ में इसने ड्युक अॅफ मार्लबरो को हषटिगत कर एक काव्य लिखा। इस काव्य का लोगों ने बहुत आदर किय। १७०६ ई० में इसे अंडर से क्रोटरी का पद प्राप्त हुआ, हैलिफाकुसने १७०७ ई० में इसे सेक्रेटरी बनाया, और १७०८ ई० में इसका पालमेटमें प्रवेश हुआ। इन सब पदो का काम इसने होग्यता से किया। इस समय इसने कुछ राजकीय लेख थ। इसका आचरण और व्यवहार सरल होने से लोगों का इसपर विशेष प्रेम था। १७२० ई० में टटैलर १७११ स्पेकटेटर और १७१३ में गार्जियन में इसने विनोद पूर्ण और शिजक्षाप्रद अनेक लेख लिखे। इन लेखा में स्पेकटेटर नाम की मासिक पत्रिका में लिखे हुए हैं और उनका धयेय बाहुत ऊँचा है। समाज की हास्यास्पद रीतियों का, मनुषय की प्रक्रति वैचित्र्य का तथा समाज की हीन दशा इत्यादि का अच्छा चित्र इस्ने खीचा हैं। इन लेखो में बडे मीठ शाब्दो में जनता पर चु कियाँ ली है। यधपि इन लेखो में गहन तत्व विषयक बाते नही है किंतु समाज सुधारकी ओर धयान दिया गया है। स्पेकटेटर का सम्पादक म्टील, अडिसन का बचपन का साथी था। इन दोनों में आगे चलकर अनबन हो गई। भगडे का कारण यह हुआ कि स्टीलने पियरेज बिल के सम्बन्ध में लिखते समय जनता के पक्ष का साथ दिया परंतु अडीसनने जनताके पक्षके विरुद्ध ही टीका की। ऐसे ही कारणसे पोप और अॅडिसन की म्रत्यु १७१९ ई० की १७ जून को हो गई। अॅडिसन की सरल तथा सुबोध भाषा सके लेखकों के लिये एक आदर्श धन गई। अभी तक उसकी लेखनशैली सर्वत्र माननीय है। लेखक की द्रषटी में ही से इनका स्थान इतना ऊँचा है। अॅडिसन का रोग जब यह रोग पूर्ण रुपसे शरीर में हो जाता है तब त्व्चाके स्वभाविक वण में व्याप्त हो जाता है तब त्वचाके स्वभाविक अन्तर होना, अत्यन्त निर्बलता, अपच,अतिसार, इर्दोग, बढी हुई ग्रंथी(Enlarged glands) इत्यादि रोग हो जाते हैं। इस रोग के जो अपवादात्मक रोगी होते हैं उनकी त्वचा में अन्तर आ जाता है अथवा पिणड की किया बिगड जाती है। १८५५ ई० में अडीसन नामक डाक्टर ने इस रोगका पता लगाया था़। तदन्तर पेरिस के संसार-प्रसिद्ध डा० ब्रऊन स्वीक्कर्ड के इसमें अन्वेषण करने की प्रबल उत्कंठ हुई। इसके कई वर्षके पश्चात यह पता लगा कि 'मिक्सडेमा'(Mixeedema) के रोगमें थायराइफडपिंड का सत देना उपयोगी होता है। इसका पता लगते ही शरीर की सभी ऐसे नलिका-रहित पिण्डकी क्रिया का संशोधन तेजी से किया जाने लगा। इस कार्य में योरपमें सबसे पहले कार्य आरम्म हुआ और सब देशों में लोगों ने कार्य आरम्म कर दिया किन्तु सबसे पहले पूर्ण सफलता लन्द्नके शेफर नमक डाक्टर को प्राप्त हुई। इसने इस पिंडके भीतरी कार्य का निर्णय किया और उसपर बहुत कुछ विवेचना की। तब अडीसन के निकाले हुए रोग को और महत्व प्राप्त हुआ। इसने खोजकर निम्नलिखित बातो पर जान प्राप्त किया: (१) इस पिणडमें अत्यन्त तीव्र सत होता है। (२) यह सात यदि किसी यरह पेट में चला जाय तो विष प्रयोग के समान लक्षण प्रकट होते हैं। (३) अर्डोनलिन(Adrenlin) इस्से प्रथक की जा सकती है। इसको पेट में पहुँचाने से शरीर की छोटी छोटी धमनियों का संकुचन होने लगता है और शरीर में रक्त गति का भार बढता है। (५) इस पिणड के बिगड्ने से इसकी अन्तर रसोप्तत्ति कम होती जाती है। कभी कभी यह एक दमसे भी नषट हो जाती है। जब यह पिणड जाता है तो जो सहानुभतिक मज्जा-तन्तुओ की जालीसी पे में रहती है। उसमें एक प्रकार की जलन हुआ करती है और इसीसे यह रोग होता है। म्रत रोगियों के बिक्रत पिणडोकी परीक्षा करने से निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं- (१) क्षय क्रिय आरम्भ होने से इस पिणड का भीतरी भाग