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था थेकेंदृमीर्द्धअक्याडमी ( विद्यापीठ अथदृरु सरखतीयन्दिर ) । शब्दकौ त्युन्यत्तिवहुतहपृ ममा- रंक्षक है । यह शब्द ग्रीक वीर अकेंडीमस्वफ नाम से लगाये हुए धागसे प्रचलित दुआ हैं । यह याग । मैं एयेम्स सारखे करीब एक मीलकौ दूरीपर हैआँ। 1 इस यागमें प्लेटोने अपने अनुयायियों की ५० वर्धा ड्ड तक तत्वशनफी शिज्ञादौ धी. इसलिये अयेंत्यं की मीकाअर्प विद्यापीठ हो गया है. ओर खक्षणसे दृ प्लेटोके तत्त्वडानकानाभ 'अकेंडमिक र्पथका तत्व- दृ शन' पडा हैं 1 एयेन्समैं इस प्रकारके विद्यापीठ नौ सौ वर्षत्तफ उन्नति पर थे अब्बहैँत्रभिक्र पंथ…प्लेटोका तत्त्वप्रान लगभग १ रातान्दियों नक यूरोंपर्में प्रचलित था । दूसरे क्यों यह कहा जा सकना कि वह विचार- प्रवाह ९०० बर्ष तक विना किसी रुकावटकें यहूदा ण; परन्तु उसमें कई शाखाएँ फूट निकली इतने वर्षों तक इस श्यास्नाकी विचावांघाग एक दी दिशाएँ यह रही थी. इसी कारण युरोपके तत्वधानकै साहित्यमै इसका अधिक महत्व हैं प्लेटोके अनुयायिर्यर्मि धड़े-वडे विद्वान पंडित थे उन्होंने उसके तत्व ओर विचार को समयसाग्य पर मिन्न-श्चि रूप दिये । प्रथमन: प्लेटोकै अनुया- पिगौने उसमें प्रभाण-स्वरुप माने हुये आध्यात्मिक 3 तत्व विना अधिक विचार किये छोड़ दिये अखिर (प्लेटोकै ) उस तत्यडानमें कार्वेडिजने नास्तिक मटका तथा रुटोहकौकै ( मुख दुमोंके ९ बिषथमें उदासीन वृत्तिकै ) मनोंका समावेश दुआ ओर उसमैकै प्रमाणवादकारूपान्तर संभाष्य- बादमे दो गया प्लेटेखिलेफर तिसरी तक जो कांख माना ३ जाता है, उसके निम्बसिखित चार भाग किये जा सकते हैं १ ) प्लेटोकी क्याना-सृष्टिकी उन्यत्तिसे उसके दो शिष्य (जैनेक्तित्त तया स्ययुष्टीपस सहमत नहींये । उदाहरणार्थ-उनका मत था कि पदाथों के गुराधर्म उन वस्तुओंके अस्तित्व के लिये कारनीभूत नहीं होते।

(२) ये सिध्दान्त अर्सीलाके काल तक मने जाते

थे कि सब पदाथों में एक्यता है। इसी कारण निक्ष्चित ज्ञान प्राप्त करने में उनसे मदद मिलती है। परन्तु पीछे इन सिध्दान्तोंकी यथार्थतामें संदेह उत्प्न्न हुआ और उनके अलग कर दिये जने पर इस प्ंथमें असेयवादका आरंभ हुआ।

(३)पक्ष्चात्ं अकडेमिक तत्वऴानमें कार्डेनीज़के नास्तिक 

मतका अर्थात्ं शंकावाद अथवा इंद्रियध्दग पदाथीका अयथार्थ ज्ञान का समावेश होने लगा।

४ ) इसी समय प्लेटोवैट्वे अनुयाथियोने भिन्न-

मित्र नरवी, शाखाओं ओरे‘ थिचस्य-धागओ को एक सूत्रमें माँधनेका प्रयन्न किया अक्रर्दरूर्ग ११५६…१६०'1 ) बचपन-मुगल वंशका तीसरा बादशाह । इसका पृहुंर नाम जला- लुद्दीन मुहम्मद अकबर है 1 हुमायूँ जय शेहूँशाह द्वारा भगाया गया, राय १५ अक्तह्मण ११४२ १० को अकवरका जन्म अग्राकौटके वीरान जंगलमैं दुआ था । जव यज्ञ चौदह महींनेका कुंग, नमी माना पिनासे इसका विछोट दो गया आंग्ना यह अपने चाचाके अधिक्रश्यभै चला गया । दा बर्ष याइ भाना पिटासे हमको भेंट दुई । यनपनमैं इमपकं अनेक विपत्तियाँ पडी. क्रई यानं इसको कठिन कारावास भी भोगना पडा. अनेक या" इसके प्राण संक्टमें पढ़ गये. किंन्तु इनृमय यिपफिर्यरेसे ३ इसका बचाव हो गया । दुमायूँने दमके पढानेके लिये एव: शिक्षक तिगुना किया था, पान्तु साबका कुछ उपयोग नहीं दुआ । दुमायूँ दयालु होनेपर भी चक्षलचित्त था. इस काष्ण उनने अपने येटे कौशिज्ञाकी ओरअधिफध्यान न दिया । अफपावे 3 णल्यके लिये होने वाले ढलदृदृक्योंके ८८१८८ प्रत्यक्ष अनुभवसे मिलनेवाली वहन कुछ शिक्षा प्राप्त का ली । वह अव्यंन नीदण युद्धिका था हम कारण ९ आगे चलकर इस शिक्षाका उसके लिए अच्छा हँ उपयोगद्रुआ । वैगन माँ स्वामिभक्त वैश्य शऱ? हुँ था । अन: हुमामूँते अफ्लादृर्का उसके डाथोंमे र्मरेप रै दिया । अकचंका तगह लालन पालन किया। हुमायुँ की मृत्युके समय अकबर की अवस्था केवल तेरह वर्ष तीन महीने की थी। इसलिये राज्य्का सब कारोबार बैगमखा ही देखता था। उस समय सिवा दिल्ली और आगरांक देशका और कोई भाग अकबर के अधिकार में नहीं था;किन्तु अगले ५० वर्षो में उत्तर हिन्दुस्तान करीब-करीब अकबर ने अपने अधिकार में कर लिया। उसकी उत्तम राज्यव्यवस्थाके कारण उसकी संसारके विख्यात और महान्ं राजपुरुर्पो में की जाती है ।

 राज्य-प्रप्तिके लिये युध्द चोदह वपेकी अल्पावस्थामें ही अकबर को अनेक संकटोंका सामना करना पड़ा। पआबमें सिकन्द्ररशाह सूर पूर्वी प्रान्तोँमें मुहम्मदशाह अदली और

हेमू, मध्य हिन्दुस्तान में राजपूताने के हिन्दू राजा, पुराने पठान सरदार और अफ़गानिस्तान के शासक और सरदार्