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॥२॥ पीपा ता को दोष गमाई। राम कहे सब ही गति पाई॥ कोटिक लत्या देहि मिटाई। इक हत्या की कला चलाई। ऐसे राम तबलु घल कीन्हा । देश देश जीवन गति दीन्हा । .