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उरी लत्या लू उतारिके। रामत करत स्ले ते हि ठांउ । झारखंड में बस यक गां साकट लोग रहे ता माहीं। प्राधी बस्ती अाधी नाद । नर नारी हंसि अपजस लेई। अपने पास न बैठन के सूनो भवन कियो विनामू। योउ मिलि सुमिरे रामे : नेरी नदी नीर भरि पानी। ता पीछे कीरतन ठानी सो मूरति संन्यासी पाए। लोगन स्वामी पास पठाए परदेसी कहा जाने मरमू। कहे संन्यासी करिये धरमू पीपा तिन को अादर कीन्हो। न्यारो घर बेठन को । सोता पे मंदिर भरवाए। चूल्लो चोको कलस भराए पात मांगि पत्राबलि कीन्ही। तब हरि बलुत रसोई : : प्रेखो एक लुतो हत्यारो। उन लोगन को ले भयारो सुनि कीतन तहँ आयो सोई। बन में रहे न देखें कं । पीपा के पग लाग्यो धाई। में स्त्यायो मारी गाई ॥ मूंड मुंडरायो गंगा जाई। सीधो कियो न जेमे भाई ॥ स्या करो मोलिं लीजे पाती। अब में तजी अापनीज तुम सों बोलि सके नहिं कोई। मेरे मन में निरचे हो तब ही स्वामी सोंज मंगाई। का के जिय की संक मि! चाउर चून दालि घृत षांतरा। बलुत भरे गोरस के भां की रसोई लाग्यो भोगू। छन में भयो जीमें सब लोगू। . लषि लरषि जीमें संन्यासी। कुटुंब समेत गांव के बार