पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/७१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥५५॥ पिवो भावही। बार बार पियो कन्यो अब तुम भोर नाना गरे छुरी दे दिषावही । गहि लियो कर मे तो पीवे को लगेई नेक राष्यो सदा पावही। ! पूछ नामदेव जी सौं टूध को प्रसंग अति रंग भरिम पिछान दिन दोय कान भई तब मान उर प्रान तक पिये। पीयो सुष रियो जब नेक राषि लियो मेत कही प्यावो कौन साषिये। धयो पेन पीवे असा नाना या मे ले दिषायो भक्त बस रस चाषिये। न कही मिले साहिल को दीजिये मिलाय करामात करामाति तो पे काहे को कि सब को भरे दिन नि सों पाईये। ताही के प्रताप श्राय इहा लौं बुलाये । गाय घर चलि जाइये। ई ले जिवाय गाय सहज र सुष पाय पाय पयो मन भाइये। लेवो देश गांव नाम लोय चाहिये न कळू ई सेज मनिमई है। संग दस बीस नर नांही करिश्राय जल मांझ गरि घोंकि परसो ल्यावो फेरि आये कलो कही नेक कीजे नई है। जल तें निकासि बलु भांति गहि पिछानि देषि सुधि बुद्धि गई है। प्रानि पखी प बचाय लीजे कीजे एक बात कभू साधु न दुषाये फेरि कीजिये न सुधि मेरी लीजिये गुननि गोय चलि देषी द्वार भीर पगदासी कटि बांधी धीर कर सौंउ प गाईये । देषि लीनी वेई काढू दीनी पांच सात चोट