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प्रेम सागर। रुक्मिनी चरित्र। रुक्मिनी रान अपने लोगों के मुख से सुन कि जो चोकसी को राजकन्या के संग गए थे राजा सिसुपाल श्री जुरासिंधु अति क्रोध कर झिलम टोप पहन पेटी बांध सब शस्त्र लगाय अपना अपना कटक ले लरने को श्री कृष के पीछे चल दोडे श्री उन के निकट जाय श्रायुध संभाल संभाल ललंकारे। अरे भागे क्यों जाते हो खडे हो शस्त्र पकड लडो जो क्षत्री सूर बीर में वे खेत में पीठ नहीं देते। इतनी बात के सुनते ही यादव फिर सनमुख ठुए और लगे दोनों ओर से शस्त्र चलने। उस काल रुक्मिनी बाल अति भयमान बूंघट की प्रोट किये प्रांसू भर भर लंबी सांसें लेती थी श्री प्रीतम का मुख निरख निरख मन ही मन बिचार कर यों कहती थी कि ये मेरे लिये इतना दुख पाते हैं। अंतरजामी प्रभु रुक्मिनी के मन का भेद जान बोले कि सुंदरि तू क्यों उरती है तेरे देखते ही देखते सब असुर दल को मार भूमि का भार उतारता हूं तू अपने मन में किसी बात को चिंता मत करे। उस काल देवता अपने अपने बिमानों में बैठे आकाश से देखते क्या हैं कि