पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/४१

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॥२५॥ कागु अरू सांप। कोने एके रुष परि कागू अरु कागनि स्ले सु वा ब्रष कालो सांप रहे सु वा कागु के बालकन को पावो । गुनी को गर्भ फेरि यो तब काग सौ इह कहि । छाउि अन्यंत्र बास कीजे इहां इन कारे सरप ते लमार है। जाते टुष्ट स्त्री कपटी मिंत्र सेवकू जो उतर देई ज तहां को बासु ए च्यायो प्रति को कारण है। तब व प्रीया तु मति उरहि बलुत बार में या को अपराध या को मारिहों । तब कागनी कहति है। यह महा तुम्ह कैसे बेर करिहो। काग कहि तु यह चिंता । जां के बुधि ले ता के बल है जां के बुधि नाहि ता' जाते बुधि हि के बलि महाबली स्यंघु सुसे बुधि ली । कागनी कहि यह केसी कथा है। कागु कस्तुि है। उपरि एक दुदीत नाम सिंघु रहे सु सब पसुन को मा पसु जाई मिलिकरि सिंघ सों बिनती करी निगराज पसु काहे को मारत है। तुम्हारे अहार को एक एक र प्रांनि रेलिगे। तब स्यंघ कहि भली बात ऐसी ही क एक पसु स्यंच नित्य पाई रहे। तहां एक दिन बुटे आई। तब उनि ससे बिचारी है जीवत ही उर को त्र' बिचार भलो है जो मरण निश् ले तो हुँ सिंघ सों काले को। इह बिचार ललवे ललवे चल्यो। तब सिं