पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/२६

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॥१०॥ सतसंग तें कहा न होय जैसें पाथर की प्रतिष्ठा किये सब मनुष देवता करि पूजे । पुनि उदयाचल परबत की बसन सूरज के उदे भये सर्व बस्तु सूरज समान ही दीसे सुसंग तें नीच की तू प्रतिष्ठा होय। चोपाई। कीट भृङ्गि ऐसें उर अंतर। मन सरूप करि देत निन्तर ॥ लोन लेम पास के परसे। या जग में यह सरसे बरसे। दोला। सेस सारखा व्यास मुनि कतु न पावे पार। सो महिमा सतसंग की कैसे कहे गंवार । तुम मेरे पुत्रनि कों पंडित कवे जोग हो । ऐसें वा राजा ने बिनती करि बासन को श्रापर्ने पुत्र सौंपे। तब वह विप्र राजपुप्रनि को ले एक ऊंचे मंदिर में जाय बेठ्यो । कोऊ समें पाय कयो सुनों महाराज कुमार। दोहा। काव्य शास्त्र आनंद तें रसिकनि के दिन जात। मूरख के दिन नींद में कलह करत उतपात ॥ हों मित्रलाम की कथा कस्तु हों क्योंकि मित्रलाभ में लाभ बलुत है।