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॥२॥ शेशनाग है जिस के लज़ार फन हैं और पत्रिनी रानी उस के यहां है और कभी सोग संताप उसे नहीं व्यापता अानंद से अचल राज वहां का वन करता है और जैसा वह राजा सुखी है वैसा संसार में कोई नहीं। . . यह सुनकर राजा को उस के मिलने की इच्छा छुई। बैतालों को बुलाकर कहा कि मेरे तई पाताल को ले चलो में शेशनाग के दरसन को जाउंगा। बेताल उठाकर पाताल को ले गये और शेशनाग का टूर से मंदिर दिखा दिया राजा ने टूर से देख बेतालों को बिदा किया और आप मन्दिर को चला। जब जाकर उस के पास पहुंचा देखे तो वह कंचन का मन्दिर रन जडे ठुये जगमगा रहा है और ऐसी जोति है उस की कि जिस में रोशनी के सिवा रात दिन कुछ नहीं मलूम होता। द्वा द्वार पर कंवल के फूलों को बंदनवारें बंधी हुई हैं और घर घर अानन्द हो रहे हैं। राजा कुछ उस्ता उरता कुछ खुशी खुशी द्वारे जा खड़ा ठुला और वहां के द्वारपालों से दंडवत कर कला महाराज को हमारा समाचार पहुंचानो कहो कि मर्त्यलोक से एक राजा श्राप के दरसन को अाया है। दरवान राजा को खबर देने गया और यह द्वार पर खड़ा तुश्रा कहता था धन्य भाग में मेरे कि में यहां तक पान पहुंचा हूं और चारों तरफ से राम कृष्ण राम कृष्ण की आवाज़ आती थी और राजा के मन्दिर से बेद की धुनि कान पड़ती थी जब रवान राजा के सनमुख जा प्रनाम कर लाथ जोड़ खड़ा लुना राजा ने उस को ओर दृष्ट की। उझे कहा महाराज । एक मनुष द्वारे पर स्वरा है और