॥१३२॥ पुत्र के कुल बंश थापक कहत पितर सुजान। धर्म मे सब पुत्र उत्तम सो न त्याग समान ॥ पनी प्रभव लब्ध अरु क्रयकल पालक चौथो तीन। पञ्चम अन्य क्षेत्रभव जानो पुत्र कहे मनु जोन ॥ कीर्ति धर्म वह होत र है पुत्र सुखद सुजान। पितृ बूउत नर्क निधि मे होत प्रब सुखदान । पुत्र त्याग न करलु भूपति सत्य धर्म बिचारि। दीजिए नरसिंह मन ते कपट कुञ्चित गरि॥ शों कूप तें बर बावली शत बावली तें यज्ञ । शत यश तें बर पुत्र शत पुत्र तें सत्य है बर तज्ञ ॥ अश्वमेध सलल सत्य सु तुला पर धरि देछ । सत्य गरुनो लोगो यह जानि भूपति लेलु ॥ सर्व बेदाध्ययन अरु सब तीर्थन को मान। होयगो नहि सुनलु भूपति सत्य बधन समान ॥ सत्य सम नहि धर्म है कछु करत सकल सुजान। झूठ तें महि पाप को अधिक बेदतिप्रमान ॥ भूप सत्य सु रूप ब्रह्म सु सत्य पन को त्याग । करलु मति मम संग तुम सों सत्य हे बर भाग ॥ अमृत सों के प्रीति तव नहि रुचत जो मो बेन। आपुली तो मै न कस्तिों संग तव बलएन । भूप तुम्हारे अन्त मेरो पुत्र यह बलवान। सिन्धुलों चहूं ओर पृथिवी पालिले सुखदान ॥
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