॥१८॥ तस्मात्त्वं जीव मे पुत्र सुसुखी शरवां शतं ॥' पुरुषात यह पुरुष भो तव अंग तें नृप अन्य। यथा निर्मल सलिल मे प्रतिबिम्ब सदृश अनन्य ॥ पाहबनीय मे जिमि अनि गार्हपत्य तें परि देत । तथा तुम ते भयो सुत यह द्विधा रूप समेत ॥ मृग मारण लत धाए गए तुम नरनाह। तहां पाई मोहि कन्या पिता अाश्रम मान ॥ सब अप्सरन मे मेनका जो ब्रह्मयोंनि अनूप। प्राय क्षिति पर पाय कोशिक मोहि जाई भूप॥ गई तजि हिमबान के लिंग यथा असती नारि। पूर्वजन्मज कर्म पातक परत नहि निधारि॥ बाल्यपन मे पिता माता तजी तुम अब भूप । जाउंगी मे याप्रम हि नहि तजलु पुत्र अनूप ॥ दुधन्त उवाच। शकुन्तला कब भयो तुम को पुत्र जानत हों म। कहें नारी बैन मिथ्या तिन्हें मानत कोंन । बन्धकी है मेनका तेहि कर्म ऐसो बीन। जनमि तो को छोरि गिरि डिग गई दया हीन ॥ महा निर्दय पिता तुम्लो क्षत्रयोनि सक्रुद्ध । । Formule sacrée que recite le pere a la naissance dun enfant. En voici la tra. duction: Puproviens de toutes les parties de mon corps; tu es ne de mes entrailles; tu es +mon ame meme: 0 mon fils, puisses-tu vivre cent ans! Crest de toique depend mon •existence; cest par toique doit se perpetuer ma race : puisses-tu donc vivre heureux, •d mon fils! 'espace de cent ans..
पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१४५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।