पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१४०

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॥8॥ शकुन्तला तूं बरी ता को लहो सु पति प्रसंश ॥ लोयगो अति महाबल तो पुत्र परम प्रशंस्य । भूमि सागर मेखला सो करेगो सब बस्य ॥ शकुन्तला तब श्राय मुनि के धोय बिधिवत पाय। लियो मुनि को भार फल को धरो शुचि सुखदाय ॥ शकुन्तलोवाच। . तात हा दुष्यन्त नृप को बरी जानि सुधर्म। करलु सहित अमात्य ताप कृपा मुनि बर पर्म ॥ कन्व उवाच। भयो हो सुप्रशन्न ताप जानि तो भत्तार। लेख बर अब मांगि इक्षित होय जोन उदार ॥ बेसम्पायन उवाच । होंहि पोख बंश मे धर्मिष्ठ अच्युत भूप। लयो यह बर मागि बर दुषन्त हित अनुरूप ॥ तीनि हायन पूर्ण धायो गर्भ परम उदार। भयो पुत्र शकुन्तला के भरो तेजस भार॥ जन्मकर्म सु कियो सिगरो कन्व मुनि अभिराम । बर्धमान बिचारि बालक महा बल को धाम ॥ दन्त शुक्ल सकान्ति जा के सिंह सम बर काय। शंख चक्र गदा कर बर मत्स्यरेखा पाय ॥ महत मूद्दी देव सुत सम बडो तह बलवान। भयो सो घट बर्ष को मुनि कन्व के सु स्थान ॥