पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥10॥ बेसम्पायन उवाच । स्लो पटि प्राय जेठे सु मुनि अत्र अनूय । तपस तेजस भरी योबन कलो ऐसें भूप॥ कोन हो तुम कोम की हो रूपं सो धारि। करति श्राश्रम बास मुनि गण मध्य के सुकुमारि॥ देखत नि तोलि अहे शुभगे भयो हन मम वित्त। तुम हि जानो चलत में सो कल्लु सकल निमित्त ॥ भूप के सु शकुन्तला तब सुनत ऐसे बेन । करन लागी पूर्व सब वृत्तान्त बिलमि सचेन ॥ कन्व की स्म सुता में दुधन्न जानछु भूप। परमानी धर्मवेत्ता महातप के रूप ॥ दुन उवाच। होता मल मुनि को कहत जमत प्रसिद्धि । भई तुम केहि भांति ता के कल्लु कन्या ऋद्धि । . शकुन्तलोवाच । . यथा मेरो भयो सम्भव तथा सुनिए भूप। भई से मना मुनि की धर्मकन्या रूप ॥ कन्न अपि सों प्राय ऐसे हि एक मुनि मतिमान। कहो ऋषि जो कहो सो लम सुनो सकल बिधान ॥ . जयकरीछन्द । कन्व उवाच। कोशिक मुनि को तप अतिमान। देखि उरे मन मे सुरत्राण ॥