पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/११८

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॥ १०२॥ करम करम टक टोर जग केळु न श्रावे सास ॥ - चौपई। तब लि कुंवर बोल्या उठि बानी। कोन घोट तोहि पासि सयानी॥ प्रति कठोर तोहि दया न घाई। बिरह अगिन तन कूक अगाई॥ तेरा मन ल कपटनि जानी। तो तेरे संग किया पयानी॥ अब तुम सषी बात कळु साची। बोली प्रीति कहो मत काची॥ सुनो कुंवर यह राजावारू। कैसे लोय तुमे पेसाक॥ उठठु चलो तुम कुंवर गुसाई। मिलो श्राज प्रीतम केताई ॥ चले कुवर मंदिर मे गये। उषा निषि नेन भरि लिये ॥ चित्ररेष ज्यों चित्त जगाई। उठी संभार मिलन को धाई। दोहा। निरषि प्रान सीतल भयो चित्त स्यो तिहिं बोर। नेनन लागी चटपटी जैसे चंद चकोर ॥ चौपई। निरषत कुंवर विकल है पाई। तब तिनि सषी करी चतुराई॥ चित्ररेषा तब देषि लजानी। परम चतुरि जिय मालि सयानी॥ उठी सषी तब बालरि आई। तब विं कुंवर सों करि चतुराई ॥ कहो कुंवर कहां तें त्राये। राजमल क्यों श्रावन पाये। ते तो कीनी बढ़त किठाई। साथ हिं कहो कुवरि फिरि माई ॥ दोला। असी सल्स रषवार में सषी बीस दास सोय। ' अब हि षबरि सुनि पायहें जियत न छाडे कोय ॥