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कलि मे गुनी न माने कोई। नगन झूठ को श्रादर होई ॥ सूद्र रूप जो मानस जेते। कलि मे गुनी जु होलिलें तेते ॥ जा पे व प्रतक्षज होई। दुनियां पास करे सब कोई॥ सबे लोग धन संमन चलें। मरि मरि मिटें जु देत नहिं करें। जास प्रीति बलुत सी लोई। तिस कों बलुत भलाई देई । करें नीच संग्रह व्योहाग। ब्रह्मा जात नहि वारन पारा ॥ कलि जुग को जानियें नरेसा। कपट रूप दे फिरिले देसा ॥. न्याय अन्याय करि जोरै सामा। निस बासर जु लोभ सों कामा॥ मन का कठन न देत लरि प्रीती। हरि ले चोर अकारथ बीती॥ विप्र बेद बिन जप्स जु कई। सूद्र जनम इकीस श्रोतरई ॥ कलि मे लोभ करे सब कोई। नित नित चलन कपट का लोई॥ कलि मे बा ठगि, पूता। ठग ठग हॉल सुजुगता॥ कलि मे हीन बचन जो कोई। लेकार देन न चाहें सोई॥ कलि मे पाप बर्तगा देवा। पुत्र पिता की करेन सेवा ॥ कलि के राय कोंगे कामा। सेवक ण्य मेटेंगे दामा॥ अपनी गोकुल जो नहि जाई। ले राजा उगलावे ताई॥ विप्र दंड संचे भंगण। कलि मे ण्य ऐसे व्योहारा ॥ कलि मे राय तजे हरि सेवा। उत्तम चहें कुमारग देवा ॥ बिरला बर्त्त येकायसी करें। बिरला तीरथ को मन छरें॥ कलि मे गर्भ गरिदे नारी। नारि रांउ भोगें बिभचारी ॥ साचा बोल न बोलें गई। बिधवा लेंगी घर हिं कराई। कलि मे मृत बंधु बिस्वासी। घर घर बंधु को पैकासी॥