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— - — - गुरु गोविन्द दोउ खड़े निन्दक नियरे राखिए कबीर संगति की साधु माला फेरत जुग भया पाहन पूजै हरि मिले वृच्छ कबहूँ न फल भखें सूरदास - - मैया मैं नहिं माखन खायो उधो मन न भए दस-बीस इकाई 3 बिहारी - - मेरी भव बाधा हरौं कनक कनक ते सौंगुनी - थोड़े ही गुन रीझते


कहत नटत रीझत खिझत घनानंद अति सूधो सनेह को मारग रावरे रूप की रीति अनूप इकाई -4 ..... - माखनलाल चतुर्वेदी पुष्प की अभिलाषा

• धूमिल : रोटी और संसद 376 | Page