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दाय के प्रतिनिधित्व के दावे से इनकार करती हुई भारत को तत्काल पूर्ण आजादी दिये जाने के दावे का समर्थन और केन्द्र और प्रान्तो मे बननेवाली सरकारो मे मोमीन जमाअत को पृथक प्रतिनिधित्व दिये जाने का मतालबा करती है।" गत वर्ष कामन- सभा मे दिये गये एक उत्तर मे मि० ऐमरी द्वारा मोमिनों की सिंख्या चालीस लाख बताये जाने के अवसर पर भी इस संस्था ने संख्या-सूचक ठीक आँकडो के सम्बन्ध मे तार देकर भारत-मन्त्रीके बयान का प्रतिवाद किया था।

२६ अप्रैल १६४३ को- जिस दिन दिल्ली मे मुसलमान लोग का सालाना जलसा ख्त्म हुआ और उसकी बैठक मे, सदैव की भाँति, 'पाकिस्तान' के मतालबे का प्रस्ताव पास हुआ - दिल्ली मे अ०-भा० मोमिन कान्फरेन्स का आठवाँ जलसा शुरू हुआ। कान्फरेन्स के अध्यक्ष मौलवी शेख मुहम्मद जहीरूद्दीन ने अपने भषण मे मुसलिम लोग के, समस्त भारतिय मुसलमानो की प्रतिनिधि- संस्था होने के, दावे का जोरदार खण्डन करते हुए इस दावे को असत्य, आपत्तिजनक और भ्रमात्मक बताया। मोमिन कान्फरेन्स के जलसे मे १५०० प्रतिनिधि, ५०० अन्सार रजाकार ( स्वयं सेवक) और १५०० दर्शक उपस्थिति थे। कान्फरेन्स ने, दूसरे दिन, इस सम्बन्ध में, नियमित प्रस्ताव स्वीकार किया, जिसमे कहा गया कि विधान-सम्बन्धी अथवा राजनीतिक ऐसा कोई समजौता मोमिनो को स्वीकार न होगा जिस पर ४॥ करोड मोमिन मुसलमानों की प्रनिनिधि-सस्था जमीअतुल मोमिनीन की सहमती प्रात न कर ली गई हो। वक्ताअओ ने, इस प्रस्तावपर भाषण देते हुए, कहा कि 'लीग हमारी नही, अमीर तबके के थोडे-से मुसलमानो की एक जमाअत है, जिसे मुसलिम जनता के स्वार्थों की रक्षा की अपेक्षा अपनी लीडरी की ज्यादा फिऋ है। भारत अखण्ड है, इसके टुकडे करना घोर अनर्थ का सूचक होगा। यदि ऐसी किसी योजना को अमल मे लाया गया तो मोमिन और आजाद मुसलिम इसका हर तरह से विरोध करेगे।' जमीअत का सदर दफतर दिल्ली मे हे।

जयकर, महामाननीय डा० मुकुन्द रामराव; एम० ए०; एलएल० डी०; पी० सी०; वार-एट-ला - प्रसिद्ध राष्ट्रवादी अग्रणी; १६१६ से सार्वजनिक जीवन में हैं; १६२३ मे बंबई प्रान्तीय धारासभा के सदस्य और धारा-