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४४८ अ०भा० चर्खा सङ्घ की नीरा से गुड़ और शकर तैयार करना, मधु-मक्षिका-पालन, देहाती चीज़ों से साबुन बनाना, रेशम तथा टसर तैयार करना, कम्बल बुनना, कागज तैयार करना, तथा मरे हुए जानवरो के चमड़े की वस्तुएँ तैयार करने की व्यवस्था की गई है । अगस्त '४२ में संघ के सचालको और कार्यकर्ताओं में से अनेक के जेल चले जाने से सघ का काम अब प्राय. अस्तव्यस्त दशा में होगया है। __अ०भा० चखो संघ-भारत मे खादी-उत्पत्ति के कार्य का सुचार रूप से सचालन करने के हेतु, सितम्बर १९२५ मे, अ०भा० काग्रेस कमिटी ने, महात्मा गाधी की प्रेरणा से, श्र०-भा० चा सघ की स्थापना की। सघ के तीन प्रकार के सहायक-सदस्य, सहयोगी, आजीवन सहयोगीहैं । प्रत्येक सदस्य को प्रतिमास १००० गज बटदार, अच्छा हाथ का कता हुआ सूत, शुल्क के रूप में, देना पड़ता है । सहयोगी को प्रतिवर्ष १२) और आजीवन सहयोगी को एक मुश्त ५००) चन्दा देने पड़ते हैं । सघ की कायसमिति मे कुल १५ सदस्य हैं, इनमे निग्न १२ सदस्य स्थायी हैं: (१) महात्मा गाधी, (२) सेठ जमनालाल बजाज, (३) श्री राजगोपालाचार्य, ( ४ ) श्री गगाधरराव देशपाडे, (५) श्री कोडा वैकटप्पय्या, (६) डा. राजेन्द्रप्रसाद, (७) ५० जवाहरलाल नेहरू, (८) श्री सतीशचन्द्र दासगुप्त, (६) सरदार वल्लभभाई पटेल, (१०) श्री मणिलाल कोठारी, (११) श्री रणछोडलाल अमृतलाल, और (१२) श्री शकरलाल बैंकर । इनमे श्री मणिलाल कोठारी तथा सेठ जमनालाल बजाज का स्वर्गवास होगया तथा सर्वश्री सतीशचन्द्र दासगुप्त, रणछोड़लाल और राजगोपालाचारी ने सघ की कार्य-समिति से त्यागपत्र दे दिए । इन रिक्त स्थानो पर श्री गोपबधु चौधरी, श्री धीरेन्द्र मजूमदार, श्री कृष्णदास जाजू , श्री लक्ष्मीदास पुरुषोत्तमदास नये सदस्य चुने गए। इस समिति को चन्दा-सग्रह करने, स्थावर सम्पत्ति की व्यवस्था करने, सम्पत्ति को सुरक्षित रखने, जायदाद गिरवी-रहन रखने, खादी शिक्षण-शालाएँ स्थापित करने तथा खादी भडारो को खोलने की व्यवस्था करने का अधिकार है। तिलक-स्वराज फड से २० लाख रुपये चर्खासघ को खादी-निर्माण के लिए मिले थे । २७ लाख रुपये की पूंजी से सघ ने अपना खादी-निर्माण का कार्य