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राष्ट्रवादी बनगये और युद्ध-प्रयत्नों में अपनी-अपनी सरकार की उन्होने मदद की। उग्र समाजवादियों ने इस नीति की निन्दा की और नया आन्दोलन संगठित किया। १६१७ की दूसरी क्रान्ति के बाद, लेनिन के नेतृत्त्व में, रूस में यह आन्दोलन जोर पकड गया। जर्मनी में, नवम्बर १६१८ में, लेवक्नेख्त के नेतृत्त्व मे, समाजवादी आन्दोलन उठा और उसने वहॉ युद्ध का अन्त ही कर दिया। जर्मनी मे नरम समाजवादी शक्तिशाली होगये, किन्तु उग्र दल क्रान्ति के प्रयत्न मे संलग्न रहा। इसके नेता लेवक्नेख्त और रोज़ा लक्सम्बर्ग मारे गये और सरकार ने आन्दोलन क अन्त कर दिया। उपरान्त १६२० में मास्को में तृतीय या 'कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल' की स्थापना हुई। योरप के अनेक देशों में कम्युनिस्ट दलों ने समाजवादी संस्थाओं से सम्बन्ध तोड लिया। समाजवादी अपने देशों की सरकारों के अधिकारी बन गये। उन्होंने तय किया कि जब तक बहुमत समाजवाद के पक्ष में नहीं हो जायगा, वह सरकारों मे समाजवादी विधान की स्थापना न करेंगे। ज्यूरिच (स्विट्जरलेन्ड) में, अधूरे ढँग पर, 'सोशलिस्ट इन्टरनेशनल' की स्थापना कीगई। सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट दलों के बीच के 'स्वतन्त्र समाजवादियों' ने १६२२ मे 'टू-एन्ड-ए-हाफ इन्टरनेशनल' नाम से अपनी 'ढाई ईंट की मसजिद' अलग बनाई, किन्तु जल्द इनका खात्मा होगया। सन् १६२२ और १६३३ के दर्मियान सैकन्ड और थर्ड इन्टरनेशनल को एक करने के प्रयत्न में पारस्परिक संघर्ष चलता रहा। मज़दूर आन्दोलन के इस विग्रह के कारण जर्मनी में नात्सीवाद का उत्थान हुआ, जिसने वहॉ समाजवाद के दोनो पक्षों को नष्ट कर दिया। दोनों को मिलाने के लिये संयुक्त-मोर्चा (पापुलर फ्रन्ट) के नाम से फिर प्रयत्न हुआ, किन्तु उसका क्षणिक प्रभाव केवल स्पेन और फ्रान्स में हुआ। जर्मनी-इटली-स्पेन के गँठजोडे ने प्रजातन्त्र-देशों मे समाजवादी विचार-धारा को दुर्बल कर दिया। इस युद्ध मे बरतानवी और मित्रदेशीय समाजवादी, हिटलरवाद के खिलाफ, अपने देशो की सहायता कर रहे हैं। विदेशों मे पडे हुए जर्मन समाजवादी भी हिटलरवाद के विरोधी हैं।

समाजवाद की दो प्रमुख्य धाराओ-प्रजातन्त्री समाजवाद (डिमोक्रेटिक ) और साम्यवाद (कम्युनिज्म)-के अतिरिक्त कई अन्य धाराये