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लेनिन (पचायतो, कौन्सिलो) के हाथ मे मजदूरों का अधिनायक-तन्त्र आगया । उस समय रूस मे सिर्फ १४ लाख प्रौद्योगिक मजदूर थे । रूस मे गृह-युद्ध पारभ होगया, इसलिये लेनिन ने, जैसे भी हो तैसे, जर्मनी और ग्रास्ट्रिया के साथ सधि करने का आयोजन किया, ताकि निश्चिन्त होकर देश के संघर्ष को सँभाल सके । गृह-युद्ध १६२१ तक चला। इसमें बोल्शेविको की विजय हुई, जिनका इस समय साम्यवादी ( कम्युनिस्ट) नाम प्रचलित होगया था । नरम समाज- वादियो से मोर्चा लेने के लिये लेनिन ने तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय सघ ( थर्ड इन्टर- नेशनल ) की स्थापना की। यह विशुद्ध साम्यवादियों की सस्था है । क्रान्ति- कारी गृह-युद्ध मे सफलता प्राप्त करने के बाद लेनिन ने 'नवीन आर्थिक नीति' का आश्रय लिया। इस नीति के अनुसार उसने रूम में देशी और विदेशी पूंजीपतियो को अवसर दिया कि वह एक सीमा तक अपना मुनाफा रखकर रूस के नष्ट-भ्रष्ट उद्योग-व्यवसाय और छोटे धन्धो को तरकी दे और इस प्रकार देश की बिगडी हुई सामाजिक स्थिति एक समतल पर पाजाय । सन् १६२७ मे सोवियत रूस ने इस नीति का अन्त करके शुद्ध समाजवादी पच- वर्षीय योजना को एतदर्थ चालू किया । १६२२ मे बोल्शेविक-विरोधी दल की एक महिला ने लेनिन पर गोली चलाई, जिससे वह घायल होगया । लेनिन की जीवन-रक्षा तो तब होगई, किन्तु उसके बाद उसका स्वास्थ्य गिरा हुया रहा । अधिक श्रम के कारण उसका स्वास्थ्य खराब होता गया, और सन् १६२३ मे वह रोग-शय्या पर पड गया और २१ जनवरी १९२४ को उसका प्राणान्त होगया । लेनिन के शरीर को मसाले आदि से सुरक्षित रखा गया है और वह मास्को के एक प्रदर्शन-भवन मे आज भी सुरक्षित है। वर्ष मे एक बार समस्त रूसी जनता उसके मृत शरीर के दर्शन कर क्रान्ति की स्मृति को नवचेतना प्रदान करती है । लेनिन को स्मृति मे पीत्रोग्राद का नाम बदल कर लेनिनग्राद रखा गया है । लेनिन का लिखा 'इम्पीरियलिज्म' नामक ग्रन्थ विश्व-विख्यात है। आचार्य नरेन्द्र देव ने 'साम्राज्यवाद' नाम से इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है। लेनिन के सिद्धान्त--पंजीवाद और उसके पापो के सम्बन्ध मे लेनिन के सिद्धान्त मार्क्स जैसे हैं, किन्तु लेनिन के युग मे उनमे और विकास हुआ है।