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आन्दोलन मे भाग लिया ओर १८ मास की कैद तथा ५००) जुर्माने की सजा मिली । १६ अगस्त १९२२ को रिहा हुए I हिन्दूमहामभा-आन्दोलन भे भाग लिया । सन् १६२५ मे हिन्दूमहासभा के कलकत्ता अधिवेशन के आप सभापति चुने गए । सन् १९२४ मे स्वराज्य-दल मे शामिल हुए । प० मोतीलालजी के साथ मतभेद होजाने पर पीछे आप उससे पृयबू दोगए । आपने मालवीयजी के साथ स्वतंत्र काग्रेस-दल का सगठन किया ओर केन्दीय द्यसेम्यलीकेसदस्य चुवेगये । पीछे प० मोतीलाल नेहरूसे उनकामेल होगया, ओर नेहरू कमिटी की रिपोर्दे की तव्यारी में भी लालाजी का सहयोग रहा ३० अक्टूबर १९२८ की लाहोर मे साइमन कमीशन का आगमन हुआ। नगर मे १४४ धारा लगा दी गई । काग्रेस की ओर से, कमीशन के वहिष्कार के लिये, लालाजी के नेतृत्त्व में, प्रदर्शन तथा जुलूस का आयोजन किया गया । पुलिस ने जुतूस पर त्ताठी-घर्षा की । इसी समय, सबसे आगे होने के कारण, लालाजी की छाती पर एक अँगरेज पुलीतमेन की लाठियो की चोटें पदों । शारीरिक ओर मानसिक दोनो रूप से लालाजी डन चोटो से आहत हुए ।इन्हींके कारण, १७ नवम्बर १ १२८ की, उनका स्वर्गवास होगया । मरने से कुछ पूर्व आपने कहा थाकि "एँमुझ पर पडी हुई प्रत्येक चोट भारत में ब्रिटिश सामाज्य-बाद के ताबूत (श्र्र्थी) की कील साबित होगी ।” रुघगोंय लालाजीने देशकी महती और सर्वतोमुखी सेवाएँ की; देश उन्हें अधिकांश राज- नीतिज्ञ के रूप मे जानता है, किन्तु साहित्य, शिक्षा, समाज-सुधार, अछूतोद्धार आदि क्षेत्रों में भी उनकी सेवायें अमर रहेगी।