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भारतीय ट्रेड यूनियन काग्रेस
 

मृत्यु होजाने पर कारवाने के मालिक के लिये यह अनिवार्य कर दिया गया कि वह मुआवजा दे । सन् १९२६ में भारत सरकार ने ट्रेड यूनियन ऐक्ट पास किया, जिसके अनुसार मजदूर संघ बनाये जाने का अधिकार स्वीकार किया गया । सन् १९२७ से साम्यवादी कर्मियो ने मज़दूर-सघों में प्रवेश कर, उन्हे पाश्चात्य देशों की मज़दूर-सस्थाशो की भॉति, सगठित करना आरम्भ क्रिया । इस प्रकार कामरेड डॉगे, का० निम्बकर, का० झाववाला, का० ब्रेडले आदि के नेतृत्व में जब मजदूर दल अधिक सगठित हुआ और व्यापक हड़तालों को सगठन होने लगा तो, भारत सरकार ने इस बढते हुए शादोलन का दमन करने के लिये, मज़दूर-विवाद-कानून (Trade Disputes Act) तथा सार्वजनिक रक्षा-क़ानून ( Public Safety Bill ) बनाये । पहले क़ानून के द्वारा हडतालों की रोक तथा कारख़ानों में ताला डाल देने के संबधमे नियम बनाये गये। दूसरे कानून द्वारा साम्यवादी मज़दूर नेताओं पर राजद्रोह आदि के अभियोग लगाकर उन्हें निर्वासित आदि करने की व्यवस्था कीगई । सार्वजनिक रक्षा क़ानून के अन्तर्गत देश भर में साम्यवादियों का दमन किया गया तथा १६२८-१९३० मे मेरठ-षड्यंत्र-केस नाम से देश के प्रमुख साम्यवादी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध, जिनमे ब्रैडले, स्प्राट और हचिन्सन नामक तीन अंगरेज कम्युनिस्ट भी थे, मुक़द्दमा चलाया गया। नवम्बर १९२६ मे, प० जवाहरलाल नेहरू के सभापतित्व में, अ०भा० ट्रेड यूनियन कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस सम्मेलन मे नरम दल के नेताओं का प्रभुत्व उठ गया। नरम दल के मज़दूर नेताओं ने श्री एन० एम० जोशी, एम० एल० ए०, के सभापतित्व मे ‘इडियन ट्रेड्स यूनियन फेडरेशन' की स्थापना की । 'नेशनल फेडरेशन आफू लेबर' नामक एक तीसरी सस्था भी पहले से मौजूद थी । अप्रैल १९३३ मे पिछली दोनों सस्थाएँ मिल गई और इसका नाम “नेशनल ट्रेड्स यूनियन फेडरेशन होगया ।। । सन् १९३५ मे नेशनल ट्रेड्स यूनियन फेडरेशन मे ६२ मज़दूर-संघ ( यूनियने ) और ८३,००० मज़दूर शामिल थे। अ०भा० ट्रेड यूनियन काग्रेस मे ६८ सघ तथा ४६,००० सदस्य थे । १७ अप्रैल १९३८ को नागपुर - मे दोनों की संयुक्त बैठक हुई, जिसमें दोनों संस्थाये एक होगई ।।